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________________ पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक - ३] [ ३२३ नैरयिकादि सेन्द्रियादि, सकायिकादि, आयुष्य-बन्धक-अबन्धकों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा ११७. एएसि णं भंते! नेरतियाणं जाव देवाणं सिद्धाण य पंचगतिसमासेणं कयरे कतरेहिंतो ० पुच्छा । गोमा ! अप्पाबहुयं जहा बहुवत्तव्वताए अट्ठगइसमासऽप्पाबहुगं च । [११७ प्र.] भगवन् ! नैरयिक यावत् देव और सिद्ध इन पांचों गतियों (गति-समूह) के जीवों में कौन जीव किन जीवों से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [११७ उ.] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के तीसरे बहुवक्तव्यता- पद के अनुसार तथा आठ गतियों के का भी अल्पबहुत्व जानना चाहिए। समुदाय ११८. एएसि णं भंते ! सइंदियाणं एगिंदियाणं जाव अणिंदियाण य कतरे कतरेहिंतो ० ? एयं पि जहा बहुवत्तव्वयाए तहेव ओहियं पयं भाणितव्वं । [११८ प्र.] भगवन् ! सइन्द्रिय, एकेन्द्रिय यावत् अनिन्द्रिय जीवों में कौन जीव, किन जीवों से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? [११८ उ.] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के तीसरे बहुवक्तव्यता- पद के अनुसार औधिक पद कहना चाहिए। ११९. सकाइयअप्पाबहुगं तहेव ओहियं भाणितव्वं । [११९] सकायिक जीवों का अल्पबहुत्व भी अधिक पद के अनुसार जानना चाहिए। १२०. एएसि णं भंते ! जीवाणं पोग्गलाणं जाव सव्वपज्जवाण य कतरे कतरेहिंतो ० ? जहा बहुवत्तव्वयाए । [१२० प्र.] भगवन् ! इन जीवों और पुद्गलों, यावत् सर्वपर्यायों में कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? [१२० उ.] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के तृतीय बहुवक्तव्यता पद के अनुसार जानना चाहिए। १२१. एएसि णं भंते ! जीवाणं आउयस्स कम्मगस्स बंधगाणं अबंधगाणं० ? जहा बहुवत्तव्वाए जाव आउयस्स कम्मगस्स अबंधगा विसेसाहिया । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० । ॥ पंचवीसइमे सए : ततिओ उद्देसो समत्तो ॥ [१२१ प्र.] भगवन् ! आयुकर्म के बन्धक और अबन्धक जीवों में कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषधिक हैं ? [१२१ उ. ] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र की तीसरे बहुवक्तव्यता पद के अनुसार, यावत् —' आयुकर्म के
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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