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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक - ३]
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नैरयिकादि सेन्द्रियादि, सकायिकादि, आयुष्य-बन्धक-अबन्धकों के अल्पबहुत्व की
प्ररूपणा
११७. एएसि णं भंते! नेरतियाणं जाव देवाणं सिद्धाण य पंचगतिसमासेणं कयरे कतरेहिंतो ०
पुच्छा ।
गोमा ! अप्पाबहुयं जहा बहुवत्तव्वताए अट्ठगइसमासऽप्पाबहुगं च ।
[११७ प्र.] भगवन् ! नैरयिक यावत् देव और सिद्ध इन पांचों गतियों (गति-समूह) के जीवों में कौन जीव किन जीवों से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[११७ उ.] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के तीसरे बहुवक्तव्यता- पद के अनुसार तथा आठ गतियों के का भी अल्पबहुत्व जानना चाहिए।
समुदाय
११८. एएसि णं भंते ! सइंदियाणं एगिंदियाणं जाव अणिंदियाण य कतरे कतरेहिंतो ० ? एयं पि जहा बहुवत्तव्वयाए तहेव ओहियं पयं भाणितव्वं ।
[११८ प्र.] भगवन् ! सइन्द्रिय, एकेन्द्रिय यावत् अनिन्द्रिय जीवों में कौन जीव, किन जीवों से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
[११८ उ.] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के तीसरे बहुवक्तव्यता- पद के अनुसार औधिक पद कहना चाहिए। ११९. सकाइयअप्पाबहुगं तहेव ओहियं भाणितव्वं ।
[११९] सकायिक जीवों का अल्पबहुत्व भी अधिक पद के अनुसार जानना चाहिए।
१२०. एएसि णं भंते ! जीवाणं पोग्गलाणं जाव सव्वपज्जवाण य कतरे कतरेहिंतो ० ?
जहा बहुवत्तव्वयाए ।
[१२० प्र.] भगवन् ! इन जीवों और पुद्गलों, यावत् सर्वपर्यायों में कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ?
[१२० उ.] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के तृतीय बहुवक्तव्यता पद के अनुसार जानना चाहिए। १२१. एएसि णं भंते ! जीवाणं आउयस्स कम्मगस्स बंधगाणं अबंधगाणं० ? जहा बहुवत्तव्वाए जाव आउयस्स कम्मगस्स अबंधगा विसेसाहिया ।
सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० ।
॥ पंचवीसइमे सए : ततिओ उद्देसो समत्तो ॥
[१२१ प्र.] भगवन् ! आयुकर्म के बन्धक और अबन्धक जीवों में कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषधिक हैं ?
[१२१ उ. ] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र की तीसरे बहुवक्तव्यता पद के अनुसार, यावत् —' आयुकर्म के