SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक-३] [३२१ ११०. दुपएसियाणं भंते ! खंधाणं किं अणुसेढिं गती पवत्तति, विसेढि गती पवत्तति ? एवं चेव। [११० प्र.] भंते ! द्विप्रदेशिक स्कन्धों की गति अनुश्रेणि होती है या विश्रेणि (श्रेणी के बिना) होती. [११० उ.] पूर्वोक्त कथनानुसार जानना। १११. एवं जाव अणंतपएसियाणं खंधाणं। [१११] इसी प्रकार यावत् अनन्त-प्रदेशिक स्कन्धपर्यन्त जानना। ११२. नेरइयाणं भंते ! किं अणुसेढिं गती पवत्तति, विसेढिं गती पवत्तति ? एवं चेव। [११२ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों की गति अनुश्रेणि होती है या विश्रेणि ? [११२ उ.] गौतम ! पूर्ववत् समझना। • ११३. एवं जाव वेमाणियाणं। [११३] इसी प्रकार वैमानिक-पर्यन्त जानना। विवेचन–श्रेणि और विश्रेणि—जीव और पुद्गल एक स्थान से दूसरे स्थान में श्रेणि के अनुसार (अनुश्रेणि) हो जाते हैं, विश्रेणि से (श्रेणि के विपरीत) नहीं। वृत्तिकार के अनुसार अनुकूल यानी पूर्वादि दिशा के अभिमुख आकाशप्रदेश की श्रेणि को अनुश्रेणि और विरुद्ध यानी विदिशा के आश्रित जो श्रेणि हो उसे विश्रेणि कहते हैं। चौवीस दंण्डकों की आवाससंख्या-प्ररूपणा ११४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता ? गोयमा ! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता। एवं जहा पढमसते पंचमुद्देसए ( स० १ उ० ५ सु० २-५) जाव अणुत्तरविमाण त्ति। [११४ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकावास कहे हैं ? __ [११४ उ.] गौतम ! उसमें तीस लाख नरकवास कहे हैं, इत्यादि प्रथम शतक के पांचवें उद्देशक (के सू. २ से ५ तक) में कहे अनुसार यावत् अनुत्तर-विमान तक जानना चाहिए। द्वादशविध गणिपिटकों का अतिदेश पूर्वक निर्देश ११५. कतिविधे णं भंते ! गणिपिडए पन्नत्ते ? १. (क) श्रीमद्भगवतीसूत्रम् खण्ड ४, पृ. २१४ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८६८
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy