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________________ ३२०] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र इस श्रेणी से गति करने वाले जीव को तीन समय लगते हैं । यह श्रेणी ऊर्ध्वलोक की आग्नेयी (पूर्व और दक्षिण के मध्यकोण) विदिशा से अधोलोक की वायव्य (उत्तर-पश्चिम कोण) विदिशा में उत्पन्न होने वाले जीव की होती है। यह पहले समय के आग्नेयी विदिशा से तिरछा पश्चिम की ओर दक्षिण दिशा के नैर्ऋत्य कोण की ओर जाता है। फिर दूसरे समय में वहाँ से तिरछा होकर उत्तर-पश्चिम वायव्य कोण की ओर जाता है और तीसरे समय में नीचे वायव्यकोण की ओर जाता है। यह तीन समय की गति त्रसनाडी अथवा उससे बाहर के भाग में होती है। ४. एकतःखा—जिस श्रेणी से जीव या पुद्गल त्रसनाडी के बायें पक्ष से त्रसनाडी में प्रविष्ट होते हैं, फिर त्रसनाडी से जाकर उसके बांयी ओर वाले भाग में उत्पन्न होते हैं उसे एकत:खा श्रेणी कहा जाता है। इस श्रेणी के एक ओर त्रसनाडी के बाहर का 'ख' अर्थात् आकाश आया हुआ होता है, इसलिए इसे एकत:खा कहते हैं । इस श्रेणी में दो, तीन अथवा चार समय की वक्रगति होने पर भी क्षेत्र की दृष्टि से इसे पृथक् कहा गया है। रेखाचित्र इस प्रकार है ५. उभयतःखा—जिस श्रेणी से जीव, त्रसनाडी के बाहर से बायें पक्ष में प्रविष्ट हो कर त्रसनाडी से जाते हुए दाहिने पक्ष में उत्पन्न होते हैं, उस श्रेणी का उभयत:खा कहते हैं, क्योंकि इस श्रेणी को त्रसनाडी के बाहर बाईं और दाहिनी ओर से आकाश का स्पर्श होता है। रेखाचित्र इस प्रकार है ६. चक्रवाल—जिस श्रेणी से परमाणु आदि गोल चक्कर लगाकर उत्पन्न होते हैं, उसे चक्रवाल-श्रेणी कहते हैं । रेखाचित्र इस प्रकार है ७. अर्द्धचक्रवाल—जिस श्रेणी से परमाणु आदि आधा चक्कर लगाकर उत्पन्न होते हैं, उसे अर्द्धचक्रवाल श्रेणी कहते हैं। रेखाचित्र यों हैंपरमाणु-पुद्गल तथा द्विप्रदेशिकादि स्कन्धों की चौवीस दण्डकों में अनुश्रेणि-गतिप्ररूपणा १०९. परमाणुपोग्गलाणं भंते ! किं अणुसेढिं गती पवत्तति, विसेढिं गती पवत्तति ? गोयमा ! अणुसेढिं गती पवत्तति, नो विसेढिं गती पवत्तति। [१०९ प्र.] भगवन् ! परमाणु-पुद्गलों की गति अनुश्रेणि (-आकाश-प्रदेशों की श्रेणी के अनुसार) होती है या विश्रेणी (-आकाश-प्रदेशों की श्रेणी के विपरीत) होती है ? [१०९ उ.] गौतम ! परमाणु-पुद्गल की गति अनुश्रेणि (-श्रेणी के अनुसार) होती है, विश्रेणि गति (-श्रेणी के बिना) नहीं होती। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८६८ (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा.७, पृ. ३२४९-३२५०
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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