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________________ पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक - ३] किन्तु असंख्यात हैं । ८४. अलोयागाससेढीओ णं भंते ! पएसट्टयाए० पुच्छा । गोयमा ! सिय संखेज्जाओ, सिय असंखेज्जाओ, सिय अनंताओ । [८४ प्र.] भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थरूप से संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । [८४ उ.] गौतम ! वे कदाचित् संख्यात हैं, कदाचित् असंख्यात हैं और कदाचित् अनन्त हैं। ८५. पाईणपडीणायताओ णं भंते ! अलोयागाससेढीओ० पुच्छा । गोयमा ! नो संखेज्जाओ, नो असंखेज्जाओ, अणंताओ। [ ३१५ [ ८५ प्र.] भगवन् ! पूर्व और पश्चिम में लम्बी अलोकाकाश की श्रेणियाँ (प्रदेशार्थ रूप से) संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । [८५ उ.] गौतम ! वे संख्यात नहीं, असंख्यात भी नहीं किन्तु अनन्त हैं । ८६. एवं दाहिणुत्तरायताओ वि । [८६] इसी प्रकार दक्षिण और उत्तर में लम्बी (अलोकाकाश- श्रेणियाँ प्रदेशार्थ रूप से) समझनी चाहिए । ८७. उड्डमहायताओ० पुच्छा । गोमा ! सिय संखेज्जाओ, सिय असंखेज्जाओ, सिय अनंताओ । [ ८७ प्र.] भगवन् ! ऊर्ध्व और अधोदिशा में लम्बी (अलोकाकाश- श्रेणियाँ प्रदेशार्थ रूप से) संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । [८७ उ.] गौतम ! वे कदाचित् संख्यात हैं, कदाचित् असंख्यात हैं और कदाचित् अनन्त हैं । विवेचन — प्रदेशार्थरूप से श्रेणियों के प्रदेश — सू. ८१-८२ में पूर्व - पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण में लम्बी लोकाकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थरूप से संख्यात तथा असंख्यात हैं, इस विषय में चूर्णिकार का आशय यह है कि वृत्ताकार लोक के दन्तक, जो अलोक में गए हुए हैं, उनकी श्रेणियाँ संख्यात प्रदेशात्मक हैं तथा अन्य श्रेणियाँ असंख्यात- प्रदेशात्मक हैं । प्राचीन टीकाकार का कथन है कि लोकाकाश वृत्ताकार होने से पर्यन्तवर्ती श्रेणियाँ संख्यात- प्रदेश की होती हैं । वे अनन्त नहीं, क्योंकि लोकाकाश के प्रदेश अनन्त नहीं हैं। लोकाकाश की ऊर्ध्वलोक से अधोलोक पर्यन्त ऊर्ध्व और अधो लम्बी श्रेणी असंख्यात प्रदेश की है, किन्तु संख्यात या अनन्त प्रदेश की नहीं हैं। अधोलोक के कोण से या ब्रह्मदेवलोक के तिरछे प्रान्त भाग से जो श्रेणियाँ निकलती हैं, वे भी इस सूत्र के कथनानुसार संख्यात प्रदेश की नहीं होती किन्तु असंख्यात प्रदेश की ही होती हैं। अलोकाकाश की संख्यात और असंख्यात प्रदेश की जो श्रेणियाँ कही हैं, वे लोकमध्यवर्ती क्षुल्लक प्रतर के निकट आई हुईं, ऊर्ध्व-अधो लम्बी अधोलोक की श्रेणियों की अपेक्षा से समझनी चाहिए। इनमें से जो प्रारम्भ में आई हुई श्रेणियाँ हैं, वे संख्यात- प्रदेशी हैं और उसके पश्चात् आई हुई श्रेणियाँ असंख्यात प्रदेशी हैं ।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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