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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
तिरछी लम्बी अलोकाकाश की श्रेणियाँ तो अनन्तप्रदेशात्मक ही होती हैं । सामान्य श्रेणियों तथा लोक- अलोकाकाशश्रेणियों में यथायोग्य सादि - सान्तादि प्ररूपणा ८८. सेढीओ णं भंते! किं सादीयाओ सपज्जवसियाओ, सादीयाओ अपज्जवसिताओ, अणादीयाओ सपज्जवसियाओ, अणादीयाओ अपज्जवसियाओ ?
गोयमा ! नो सादीयाओ सपज्जवसियाओ, नो सादीयाओ अपज्जवसियाओ, नो अणादीयाओ सपज्जवसियाओ, अणादीयाओ अपज्जवसियाओ ।
[८८ प्र.] भगवन् ! क्या श्रेणियाँ सादि - सपर्यवसित (आदि और अन्त - सहित) हैं, अथवा सादिअपर्यवसित (आदि सहित और अन्त - रहित ) हैं या वे अनादि- सपर्यवसित (आदि-रहित और अन्तसहित) हैं, अथवा अनादि - अपर्यवसित (आदि और अन्त से रहित ) हैं ?
[ ८८ उ.] गौतम ! वे न तो सादि- सपर्यवसित हैं, न सादि - अपर्यवसित हैं और न अनादि-सपर्यवसित हैं, किन्तु अनादि - अपर्यवसित हैं ।
८९. एवं जाव उड्ढमहायताओ ।
[८९] इसी प्रकार का कथन यावत् ऊर्ध्व और अधो दिशा में लम्बी श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिए।
९०. लोयागाससेढीओ णं भंते! किं सादीयाओ सपज्जवसियाओ० पुच्छा।
गोयमा ! सादीयाओ सपज्जवसियाओ, नो सादीयाओ अपज्जवसियाओ, नो अणादीयाओ सपज्जवसियाओ, नो अणादीयाओ अपज्जवसियाओ ।
[९० प्र.] भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियाँ सादि- सपर्यवसित हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ।
[९० उ. ] गौतम ! वे सादि - सपर्यवसित (आदि - अन्त सहित) हैं, किन्तु न तो सादि - अपर्यवसित हैं, न अनादि- सपर्यवसित हैं और न ही अनादि- अपर्यवसित हैं ।
९१. एवं जाव उड्ढमहायताओ ।
[९१] इसी प्रकार का कथन यावत् ऊर्ध्व और अधो लंबी लोकाकाश- श्रेणियों के विषय में समझना चाहिए ।
९२. अलोयागाससेढीओ णं भंते! किं सादीयाओ० पुच्छा ।
गोयमा ! सिय सादीयाओ सपज्जवसियाओ, सिय सादीयाओ अपज्जवसियाओ, सिय अणादीयाओ सपज्जवसियाओ, सिय अणादीयाओ अपज्जवसियाओ ।
[९२. प्र.] भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ सादि - सपर्यवसित हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ।
[९२. उ.] गौतम ! वे कदाचित् सादि - सपर्यवसित हैं, कदाचित् सादि - अपर्यवसित हैं, कदाचित्
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८६५
(ख) श्रीमद्भगवतीसूत्रम् (गुज. अनु.) खण्ड ४, पृ. २११-१२