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________________ ३१६ ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तिरछी लम्बी अलोकाकाश की श्रेणियाँ तो अनन्तप्रदेशात्मक ही होती हैं । सामान्य श्रेणियों तथा लोक- अलोकाकाशश्रेणियों में यथायोग्य सादि - सान्तादि प्ररूपणा ८८. सेढीओ णं भंते! किं सादीयाओ सपज्जवसियाओ, सादीयाओ अपज्जवसिताओ, अणादीयाओ सपज्जवसियाओ, अणादीयाओ अपज्जवसियाओ ? गोयमा ! नो सादीयाओ सपज्जवसियाओ, नो सादीयाओ अपज्जवसियाओ, नो अणादीयाओ सपज्जवसियाओ, अणादीयाओ अपज्जवसियाओ । [८८ प्र.] भगवन् ! क्या श्रेणियाँ सादि - सपर्यवसित (आदि और अन्त - सहित) हैं, अथवा सादिअपर्यवसित (आदि सहित और अन्त - रहित ) हैं या वे अनादि- सपर्यवसित (आदि-रहित और अन्तसहित) हैं, अथवा अनादि - अपर्यवसित (आदि और अन्त से रहित ) हैं ? [ ८८ उ.] गौतम ! वे न तो सादि- सपर्यवसित हैं, न सादि - अपर्यवसित हैं और न अनादि-सपर्यवसित हैं, किन्तु अनादि - अपर्यवसित हैं । ८९. एवं जाव उड्ढमहायताओ । [८९] इसी प्रकार का कथन यावत् ऊर्ध्व और अधो दिशा में लम्बी श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिए। ९०. लोयागाससेढीओ णं भंते! किं सादीयाओ सपज्जवसियाओ० पुच्छा। गोयमा ! सादीयाओ सपज्जवसियाओ, नो सादीयाओ अपज्जवसियाओ, नो अणादीयाओ सपज्जवसियाओ, नो अणादीयाओ अपज्जवसियाओ । [९० प्र.] भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियाँ सादि- सपर्यवसित हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । [९० उ. ] गौतम ! वे सादि - सपर्यवसित (आदि - अन्त सहित) हैं, किन्तु न तो सादि - अपर्यवसित हैं, न अनादि- सपर्यवसित हैं और न ही अनादि- अपर्यवसित हैं । ९१. एवं जाव उड्ढमहायताओ । [९१] इसी प्रकार का कथन यावत् ऊर्ध्व और अधो लंबी लोकाकाश- श्रेणियों के विषय में समझना चाहिए । ९२. अलोयागाससेढीओ णं भंते! किं सादीयाओ० पुच्छा । गोयमा ! सिय सादीयाओ सपज्जवसियाओ, सिय सादीयाओ अपज्जवसियाओ, सिय अणादीयाओ सपज्जवसियाओ, सिय अणादीयाओ अपज्जवसियाओ । [९२. प्र.] भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ सादि - सपर्यवसित हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । [९२. उ.] गौतम ! वे कदाचित् सादि - सपर्यवसित हैं, कदाचित् सादि - अपर्यवसित हैं, कदाचित् १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८६५ (ख) श्रीमद्भगवतीसूत्रम् (गुज. अनु.) खण्ड ४, पृ. २११-१२
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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