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________________ चौवीसवाँ शतक : उद्देशक-२०] [२३३ [२९ प्र.] यदि वे (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च), संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से? [२९ उ.] गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आ कर उत्पन्न होते हैं, किन्तु असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से उत्पन्न नहीं होते हैं। ३०. जदि संखेज०, जाव किं पज्जत्तासंखेज, अपज्जत्तासंखेज ? दोसु वि। [३० प्र.] भगवन् ! यदि वे (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से? [३० उ.] गौतम ! वे दोनों (पर्याप्तक और अपर्याप्तक संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों) से आकर उत्पन्न होते हैं। .३१. संखेजवासाउयसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए जे भविए पंचेदियतिरिक्खजोणिएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवति०? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिपलिओवमद्वितीएसु उववजिजा। [३१ प्र.] भगवन् ! यदि संख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक, जो पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है? ___ [३१.उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है। ३२. ते णं भंते ! . अवसेसं जहा एयस्स चेव सन्निस्स रयणप्पभाए उववज्जमाणस्स पढमगमए, नवरं ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, सेसं तं चेव जाव भवादेसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाइं; एवतियं०। [ पढमो गमओ] [३२ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । [३२ उ.] (गौतम ! ) रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने वाले इस संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च के प्रथम गमक के समान सब वक्तव्यता कहनी चाहिए। परन्तु इसकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन की होती है। शेष सब कथन भवादेश तक पूर्ववत् जानना। काल की अपेक्षा से—जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम, यावत् इतने काल गमनागमन करता है। [प्रथम गमक]
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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