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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ३३. सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चाहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ। [ बीओ गमओ]
[३३] यदि वही (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) जीव, जघन्य काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न हो, तो वही पूर्वोक्त वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष कालादेश से—जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त
और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि, (यावत् इतने काल गमनागमन करता है।) [द्वितीय गमक]
३४. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववण्णो, जहन्नेणं तिपलिओवमद्वितीएसु, उक्कोसेणं वि तिपलिओवमद्वितीएस उवव०। एस चेव वत्तव्वया, नवरं परिमाणं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववति। ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं। सेसं तं चेव जाव अणुबंधो त्ति। भवादेसेणं दो भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहन्नेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुवकोडीए अब्भहियाई [तइओ गमओ]।
[३४] यदि वह (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार कहना चाहिए। परन्तु परिमाण में विशेष यह है कि वह जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। (उसके शरीर की) अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट एक हजार योजन की होती है। शेष पूर्ववत् यावत् अनुबन्ध तक जानना। भवादेश से—दो भव और कालादेश से—जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक तीन पल्योपम और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-अधिक तीन पल्योपम, इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। [तृतीय गमक]
३५. सो चेव अप्पणा जहन्नकालद्वितीओ जाओ, जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु उवव० । लद्धी से जहा एयस्स चेव सन्निपंचेंदियस्स पुढविकाइएसु उववजमाणस्स मज्झिल्लएसु तिसु गमएसु सच्चेव इह वि मज्झिमएसु तिसु गमएसु कायव्वा। संवेहो जहेव एत्थ चेव असन्निस्स मज्झिमएसु तिसु गमएसु। [४-६ गमगा]
[३५] यदि वह (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च), स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और (संज्ञी पं. तिर्यञ्चों में) उत्पन्न हो, तो वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-वर्ष की स्थितिवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होता है । इस विषय में पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले इसी संज्ञी पंचेन्द्रिय की वक्तव्यता के अनुसार मध्य के तीन (४-५-६) गमक जानने चाहिए तथा पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय के बीच के तीन गमकों (४-५-६) में जो संवेध कहा है, तदनुसार यहाँ भी कहना चाहिए। [गमक ४-५-६]
३६. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, जहा पढमगमओ, णवरं ठिती अणुबंधो जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। कालाएसेणं जहणं पुव्वकोडी अंतोमुत्तमब्भहिया, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई पुवकोडिपुहत्तमब्भहियाई। [ सत्तमो गमओ]