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________________ तेरसमो : आउकाइय- उद्देसओ तेरहवाँ उद्देशक : अप्कायिकों की उत्पत्ति आदि सम्बन्धी [ २१४ तेरहवें उद्देशक के प्रारम्भ में मध्य-मंगलाचरण १. नमो सुयदेवयाए । [१] श्रुत-देवता को नमस्कार हो । विवेचन — यह मध्य - मंगलाचरण है। आदि- मंगलाचरण करने के बाद अब शास्त्रकार शास्त्र की निर्विघ्न समाप्ति के लिए शास्त्र के मध्य में अर्थात् चौवीसवें शतक के तेरहवें उद्देशक के आदि में मंगलाचरण करते हैं। अप्कायिकों में उत्पन्न होनेवाले चौवीस दण्डकों में उत्पादादि प्ररूपणा २. आउकाइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति ? ० एवं जहेव पुढविकाइयउद्देसए जाव पुढविकाइये णं भंते ! जे भविए आउकाइएसु उववज्जित्तए से णं भंते! केवति० ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त०, उक्कोसेणं सत्तवाससहस्सट्ठितीएसु उववज्जेज्जा । [२ प्र.] भगवन् ! अप्कायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं । इत्यादि प्रश्न । [२ उ.] जिस प्रकार पृथ्वीकायिक- उद्देशक (बारहवें ) में कथन किया है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना। यावत् [प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, जो अप्कायिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले अप्कायिक में उत्पन्न होता है ? [उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की स्थिति वाले अप्कायिकों में उत्पन्न होता है । ३. एवं पुढविकाइयउद्देसगसरिसो भाणियव्वो, णवरं ठिइं संवेहं च जाणेज्जा | सेसं तहेव । सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरति । ॥ चउवीसमे सते : तेरसमो उद्देसओ समत्तो ॥ २४-१३ ॥
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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