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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[३] इस प्रकार यह समग्र उद्देशक (नौ गमकों सहित) पृथ्वीकायिक के समान कहना चाहिए। विशेष यह है कि इसकी स्थिति और संवेध ( के विषय में यथायोग्य) जान लेना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं।
विवेचन — निष्कर्ष — स्थिति और संवेध के सिवाय अप्कायिक का समग्र वर्णन पृथ्वीकायिकउद्देशक (पूर्वोक्त बारहवें उद्देशक) के समान समझना चाहिए।
॥ चौवीसवाँ शतक : तेरहवाँ उद्देशक समाप्त ॥
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