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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[५५ प्र.] भगवन् ! ईशानदेव, जो पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने योग्य है, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उसकी उत्पत्ति होती है ।
[५५ उ.] (गौतम ! ) इस (ईशानदेव के ) सम्बन्ध में पूर्वोक्त नौ ही गमक इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और अनुबन्ध जघन्य सातिरेक एक पल्योपम और उत्कृष्ट सातिरेक दो सागरोपम होता है। शेष सब पूर्ववत् समझना चाहिए।
'भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, 'इस प्रकार कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन—इन सब गमकों की व्याख्या पूर्ववत् जाननी चाहिए।
॥ चौवीसवां शतक : बारहवाँ उद्देशक समाप्त ॥
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