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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र नागकुमार में उत्पन्न होनेवाले पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी-मनुष्य में उपपात आदि प्ररूपणा
१७. जदि संखेजवासाउयसन्निमणु० किं पजत्तासंखेज०, अप्पजतासं०? गोयमा ! पजत्तासंखे०, नो अपजत्तासंखे०।
[१७ प्र.] भगवन् ! यदि वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं तो पर्याप्त या अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं ?
[१७ उ.] गौतम ! वे पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं, अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से नहीं आते हैं।
१८. पजत्तासंखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए नागकुमारेसु उववजितए से णं भंते ! केवति?
गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्स०, उक्कोसेणं देसूणदोपलिओवमट्टिती० । एवं जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणस्स स च्चेव लद्धी निरवसेसा नवसु गमएसु, नवरं नागकुमारट्ठितिं संवेहं च जाणेजा। [१-९ गमगा] सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०।
॥चउवीसतिमे सए : ततिओ उद्देसगो समत्तो॥ २४-३॥ [१८ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य नागकुमारों में उत्पन्न हो तो कितनी काल की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है ?
[१८ उ.] गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति के नागकुमारों में उत्पन्न होता है, इत्यादि असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य की वक्तव्यता के समान किन्तु स्थिति और संवेध नागकुमारों के समान जानना चाहिए। [१-९ गमक]
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर कर गौतम स्वामी, यावत् विचरण करते हैं।
विवेचन—निष्कर्ष-(१) नागकुमार पर्याप्त संख्यात अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर नागकुमारों में उत्पन्न होते हैं। (२) वे जघन्य १० हजार वर्ष और उत्कृष्ट कुछ न्यून दो पल्योपम की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होते हैं । (३) नागकुमारों में उत्पन्न होने सम्बन्धी नौ ही गमकों की वक्तव्यता प्रायः असुरकुमारों के समान है। जहाँ-जहाँ अन्तर है, वहाँ मूलपाठ में ही वह बता दिया गया
॥चौवीसवाँ शतक : तृतीय उद्देशक सम्पूर्ण॥
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१. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं. भाग २ (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ. ९२८-९२९
(ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन), भा. ६, पृ. ३०६१