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________________ [१८१ चउत्थाइ-एगारस-पज्जता सुवण्णकुमाराइ-थणियकुमार पज्जंता उद्देसगा चतुर्थ से लेकर ग्यारहवें उद्देशक तक : सुवर्णकुमार से स्तनितकुमार तक चौथे से लेकर ग्यारहवें उद्देशक की समग्र वक्तव्यता : तृतीय नागकुमार-उद्देशकानुसार १. अवसेसा सुवण्णकुमारादी जाव थणियकुमारा, एए अट्ठ वि उद्देसगा जहेव नागकुमाराणं तहेव निरवसेसा भाणियव्वा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥ चउवीसतिमे सए : चउत्थाइ-एगारसपजंता उद्देसगा समत्ता॥ २४-४-११॥ [१] सुवर्णकमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक अवशिष्ट आठ भवनपति देवों के ये आठ उद्देशक भी नागकुमारों के समान समग्र वक्तव्यता-युक्त कहने चाहिये। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है;' यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते - ॥चौवीसवाँ शतक : चार से ग्यारह उद्देशक तक सम्पूर्ण॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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