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चौवीसवाँ शतक : उद्देशक-३]
[१७९ [१३ प्र.] भगवन् ! यदि वह (नागकुमार) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, या असंज्ञी मनुष्यों से?
[१३ उ.] गौतम ! वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी मनुष्यों से नहीं; इत्यादि जैसे असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य मनुष्यों की वक्तव्यता कही है, वैसे ही यहाँ कहनी चाहिए। यावत्
- १४. असंखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जइ ?
गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्स०, उक्कोसेणं देसूणदुपलिओवम० । एवं जहेव असंखेजवासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं नागकुमारेसु आदिल्ला तिण्णि गमका तहेव इमस्स वि, नवरं पढमबितिएसु गमएसु सरीरोगाहणा जहन्नेणं सातिरेगाइं पंच धणुसयाई, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई, ततियगमे ओगाहणा जहन्नेणं देसूणाई दो गाउयाइं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। सेसं तं चेव।[१-३ गमगा]
[१४ प्र.] भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य, जो नागकुमारों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है ? ।
[१४ उ.] गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है। इस प्रकार असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्चों के नागकुमारों में उत्पन्न होने सम्बन्धी आदि के तीन गमक जानने चाहिए। परन्तु पहले और दूसरे गमक में शरीर की अवगाहना जघन्य सातिरेक पांच सौ धनुष और उत्कृष्ट तीन गाऊ होती है। तीसरे गमक में अवगाहना जघन्य देशोन दो गाऊ और तीन गाऊ की होती है। शेष सब पूर्ववत्। [गमक १-२-३]
१५. सो चेव अप्पणा जहन्नकालद्वितीओ जाओ, तस्स ति तिसु वि गमएसु जहा तस्स चेव असुरकुमारेसु उववजमाणस्स तहेव निरवसेसं। [४-६ गमगा]
[१५] यदि वह स्वयं (नागकुमार), जघन्य काल की स्थिति वाला हो, तो उसके भी तीनों गमकों में असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी मनुष्य के समान समग्र वक्तव्यता कहनी चाहिए। [गमक ४-५-६]
१६. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीयो जाओ तस्स तिसु वि गमएसु जहा तस्स चेव उक्कोसकालद्वितीयस्स असुरकुमारेसु उववजमाणस्स, नवरं नागकुमारट्ठिति संवेहं ज जाणेजा। सेसं तं चेव। [७-८ गमगा]
[१६] यदि वह (नागकुमार) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो, तो उसके सम्बन्ध में भी तीनों यमकों में असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले असंख्यातवर्षीय संज्ञी मनुष्य के समान वक्तव्यता जाननी चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि यहाँ नागकुमारों की स्थिति और संवेध जानना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् जानना। [गमक ७-८-९]