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________________ चौवीसवां शतक : उद्देशक-१] [१५७ जाव करेजा। [सु० १०२ छट्ठो गमओ] [१०२] यदि वह जघन्य कालस्थिति वाला मनुष्य, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त गमक के समान जानना। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से-जघन्य मासपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार मासपृथक्त्व अधिक चार सागरोपम; इतने काल यावत् गमनागमन करता है। [सू. १०२ छठा गमक] १०३. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जातो, सो चेव पढमगमओ नेयव्वो, नवरं सरीरोगाहणा जहन्नेणं पंच धणुसयाई, उक्कोसेण वि पंच धणुसयाई; ठिती जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी; एवं अणुबंधो वि, कालाएसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहि पुव्वकोडीहि अब्भहियाई, एवतियं काल जाव करेजा। [सु० १०३ सत्तमो गमओ] _[१०३] यदि वह मनुष्य स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और (रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में) उत्पन्न हो, तो उसके विषय में प्रथम गमक के समान समझना। विशेषता यह है कि उसके शरीर की अवगाहना जघन्य पांच सौ धनुष और उत्कृष्ट भी पाँच सौ धनुष की होती है। स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की होती है एवं अनुबन्ध भी उसी प्रकार जानना। काल की अपेक्षा से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम; इतने काल यावत् गमनागमन करता है। [सू. १०३ सप्तम गमक] __१०४. सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, स च्चेव सत्तमगमगवत्तव्वया, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ, एवतियं कालं जाव करेजा। [सु० १०४ अट्ठमो गमओ]। [१०४] यदि वही (उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला) मनुष्य, जघन्य काल की स्थिति वाले (रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों) में उत्पन्न हो, तो उसकी वक्तव्यता सप्तम गमक के समान जानना। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि; इतने काल यावत् गमनागमन करता है। [सू. १०४ अष्टम गमक] __ १०५. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, सा चेव सत्तमगमगवत्तव्वया, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं सागरोवमं पुव्वकोडीए अब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहि पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवतियं काल सेवेजा जाव करेजा।[सु० १०५ नवमो गमओ] [१०५] यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला मनुष्य, उत्कृष्ट स्थिति वाले (रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों) में उत्पन्न हो तो उसी पूर्वोक्त सप्तम गमक के समान वक्तव्यता जाननी चाहिए। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से जघन्य पूर्वकोटि अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम; इतने काल यावत् गमनागमन करता है। [सू. १०५ नौवाँ गमक] विवेचन–रत्नप्रभा के नैरयिकों में उत्पत्ति-परिमाणादि विचार-रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य पर्याप्तक, संख्यातवर्ष की आयु वाले और संज्ञी होते हैं, क्योंकि संज्ञी मनुष्य सदा संख्यात
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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