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________________ १५६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चालीस हजार वर्ष यावत् गमनागमन करता है। [सू. ९८ द्वितीय गमक] ___ ९९. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववन्नो, एसा चेव वत्तव्वया, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं सागरोवमं मासपुहत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइ, एवतियं जाव करेजा। [सु० ९९ तइओ गमओ] [९९] यदि वह मनुष्य, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त सर्व वक्तव्यता जाननी चाहिए। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से जघन्य मासपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम, काल यावत् गमनागमन करता है। [सू. ९९ तृतीय गमक] १००. सो चेव अप्पणा जहन्नकालद्वितीओ जाओ, एसा चेव वत्तव्वता, नवरं इमाइं पंच नाणत्ताइं—सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलपुहत्तं, उक्कोसेणं वि अंगुलपुहत्तं १, तिन्नि नाणा, तिन्नि अन्नाणा भयणाए २, पंच समुग्घाया आदिल्ला ३, ठिती ४ अणुबंधो ५ य जहन्नेणं मासपुहत्तं, उक्कोसेण वि मासपुहत्तं। सेसं तं चेव जाव भवादेसो त्ति) कालादेसेणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं मासपुहत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं मासपुहत्तेहिं अब्भहियाई, एवतियं जाव करेजा। [सु० १०० चउत्थो गमओ]। [१००] यदि वह मनुष्य स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो उसके विषय में भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिए। इसमें इन पांच बातों में विशेषता है—(१) उनके शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल-पृथक्त्व होती है। (२) उनके तीन ज्ञान और तीन अज्ञान विकल्प (भजना) से होते हैं। (३) उनके आदि के पांच समुद्घात होते हैं (४-५) उनकी स्थिति और अनुबन्ध जघन्य मासपृथक्त्व और उत्कृष्ट मासपृथक्त्व होता है। शेष सब भवादेश तक पूर्ववत् जानना चाहिए। काल की अपेक्षा से—जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार मासपृथक्त्व अधिक चार सागरोपम; इतने काल यावत् गमनागमन करता है। [सू. १०० चतुर्थ गमक] १०१. सा चेव जहन्नकालद्वितीएसु उववन्नो, एसा चेव वत्तव्वया चउत्थगमगसरिसा, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं मासपुहत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं चत्तालीसं वाससहस्साइं चउहिं मासपुहत्तेहिं अब्भहियाई, एवतियं जाव करेजा।[सु० १०१ पंचमो गमओ] [१०१] यदि वह मनुष्य स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त चतुर्थगमक के समान इसकी वक्तव्यता समझना। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से—जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार मासपृथक्त्व अधिक चालीस हजार वर्ष काल यावत् गमनागमन करता है। [सू. १०१ पंचम गमक] १०२. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववन्नो, एस चेव गमगो, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं सागरोवमं मासपुहत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं मासपुहत्तेहिं अब्भहियाई, एवतियं
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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