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________________ १३६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ४१. उक्कोसकालद्वितीयपज्जत्ताअसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए से णं भंते! केवतिकालं जाव उववजेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेन्जतिभागं जाव उववज्जेज्जा। [४१ प्र.] भगवन् ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्त-असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जो जीव, रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, भंते ! वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता __[४१ उ.] गौतम! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले (नैरयिकों में) उत्पन्न होता है, (और) उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। ४२. ते णं भंते! जीवा एगसमएणं० ? अवसेसं जहेव ओहियगमए तहेव अणुगंतव्वं, नवरं इमाई दोनि नाणत्ताई-ठिती जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। एवं अणुबंधो वि। अवसेसं तं चेव। [४२ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? (इत्यादि प्रश्न) [४२ उ.] गौतम! सारी वक्तव्यता पूर्वोक्त औधिक (सामान्य) (सू.६ से २५ तक) के अनुसार जाननी चाहिए। किन्तु इन दो बातों (स्थिति और अनुबन्ध) में अन्तर है। (यथा—) स्थिति—जघन्य पूर्वकोटि वर्ष की और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि वर्ष की है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी है। शेष सब पूर्ववत् (जानना चाहिए)। ४३. से णं भंते! उक्कोसकालद्वितीयपज्जत्ताअसन्नि० जाव तिरिक्खजोणिए रतणप्पभा०? भवाएसेणं दो भवग्गहणाइं; कालाएसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुव्वकोडीए अब्भहियं; एवतियं जाव करेग्जा। [सु० ४१४३ सत्तमो गमओ]। _[४३ प्र.] भगवन् ! वह जीव, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी—यावत् (पंचेन्द्रिय-) तिर्यञ्चयोनिक हो; (फिर) रत्नप्रभापृथ्वी (के नैरयिकों में उत्पन्न हो, और पुनः उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक हो तो वह वहाँ कितने काल तक यावत् (सेवन एवं गमनागमन करता है?) __ [४३ उ.] गौतम! वह भवादेश से दो भव ग्रहण करता है और कालादेश से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि वर्ष और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग; इतने काल यावत् गमनागमन करता है। [सू. ४१ से ४३ तक सप्तम गमक] ४४. उक्कोसकालट्ठितीयपज्जत्ता० तिरिक्खजोणिए० णं भंते! जे भविए जहन्नकालट्ठितीएसु
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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