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बितिए 'कल' वग्गे : दस उद्देसगा द्वितीय 'कल' वर्ग : दश उद्देशक
प्रथम शालिवर्गानुसार द्वितीय कलवर्ग का निरूपण
१. अह भंते ! कल-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-निफ्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-सडिण-पलिमंथगाणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते ! जीवा कओहिंतो उववज्जति ? एवं मूलाईया दस उद्देसगा भाणियव्वा जहेव सालीणं निरवसेसं तहेव।
॥ एगवीसइमे सए : बितियो वग्गो समत्तो॥२१-२॥ [१ प्र.] भगवन् ! कलाय (मटर), मसूर, तिल, मूंग, उड़द (माष), निष्पाव (वल्ल-वालोर नामक धान्य), कुलथ, आलिसंदक, सटिन और पलिमंथक (चना); इन सबके मूल के रूप में जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[१ उ.] गौतम ! जिस प्रकार शालि आदि के विषय में मूल आदि दस उद्देशक कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी मूल आदि समग्र दस उद्देशक कहने चाहिए।
॥ इक्कीसवाँ शतक : द्वितीय वर्ग समाप्त॥
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