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________________ ९८] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र असंयोगी चार-चार भंग गिनने से आठ भंग होते हैं । द्विकसंयोगी छह विकल्प होते हैं, उनके प्रत्येक के एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा चार-चार भंग होने से ६x४-२४ भंग होते हैं। त्रिकसंयोगी चार विकल्प होते हैं। एक-एक विकल्प के आठ-आठ भंग होने से ४४८-३२ भंग होते हैं। चतुःसंयोगी सोलह भंग होते हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर ८+२४+३२+१६-८० भंग होते हैं।' इन दसों की अवगाहना—एक गाथा के अनुसार—मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल और पत्र, इस सातों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट धनुष-पृथक्त्व की है। पुष्प, फल और बीज, इन तीनों की जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट अंगुलपृथक्त्व की है। ॥ इक्कीसवां शतक : प्रथम वर्ग समाप्त॥ *** १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८०२ (ख) भगवती. विवेचन. भाग ६, (पं. घेवरचन्दजी), पृ. २९४७ २. मूले कंदे खंधे तया य साले पवाल-पत्ते य। सत्तसु वि धणु पुहुत्तं, अंगुलिमो पुष्फ-फल-बीए॥ -भगवती. अ. वृ., पत्र ८०२
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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