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ततिए 'अयसि' वग्गे : दस उद्देसगा
तृतीय ‘अतसी' वर्ग : दश उद्देशक
प्रथम शालिवर्गानुसार तृतीय अतसी वर्ग का निरूपण
१.अह भंते ! अयसि-कुसुंभ-कोद्दव-कंगु-रालग-तुवरी-कोदूसा-सण-सरिसव-मूलगबीयाणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते ! जीवा कओहिंतो उववजंति ? एवं एत्थ वि मूलाईया दस उद्देसगा जहेव सालीणं निरवसेसं तहेव भाणियव्वं। ...
॥ एगवीसइमे सए : तइओ वग्गो समत्तो॥ २१-३॥ [१ प्र.] भगवन् ! अलसी, कुसुम्ब, कोद्रव, कांग, राल, तूअर, कोदूसा, सण और सर्षप (सरसों) तथा मूलक बीज, इन वनस्पतियों के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[१ उ.] (गौतम ! ) 'शालि' आदि प्रथम वर्ग के मूल आदि दस उद्देशकों के समान यहाँ भी समग्ररूप से मूलादि दस उद्देशक कहने चाहिए।
॥इक्कीसवाँ शतक : तृतीय वर्ग समाप्त॥ .
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