SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समवायाङ्ग में यह बताया गया है कि अनेक देवताओं, राजाओं व राजऋषियों ने भगवान् महावीर से विविध प्रकार के प्रश्न पूछे। भगवान् ने उन सभी प्रश्नों का विस्तार से उत्तर दिया। इस आगम में स्वसमय, परसमय, जीव, अजीव, लोक, अलोक आदि की व्याख्या की गई है। आचार्य अकलङ्क के मन्तव्यानुसार प्रस्तुत आगम में जीव है या नहीं? इस प्रकार के अनेक प्रश्नों का निरूपण किया गया है। आचार्य वीरसेन ने बताया है कि व्याख्याप्रज्ञप्ति में प्रश्नोत्तरों के साथ ही ९३,००० छिन्नछेदनयों से ज्ञापनीय शुभ और अशुभ का वर्णन प्रस्तुत आगम में एक श्रुतस्कन्ध, एक सौ एक अध्ययन, दस हजार उद्देशनकाल, दस हजार समुद्देशनकाल, छत्तीस हजार प्रश्न और उनके उत्तर २,८८,००० पद और संख्यात अक्षर हैं। व्याख्याप्रज्ञप्ति की वर्णन परिधि में अनंत गम, अनंत पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर आते हैं। आचार्य अभयदेव ने पदों की संख्या २,८८,००० बताई है तो समवायाङ्ग में पदों की संख्या ८४,००० बताई है। व्याख्याप्रज्ञप्ति के अध्ययन 'शतक' के नाम से विश्रुत हैं। वर्तमान में इसके १३८ शतक और १९२३ उद्देशक प्राप्त होते हैं। प्रथम ३२ शतक पूर्ण स्वतंत्र हैं, तेतीस से उनचालीस तक के सात शतक १२-१२ शतकों के समवाय हैं। चालीसवां शतक २१ शतकों का समवाय है। इकतालीसवाँ शतक स्वतंत्र है। कुल मिलाकर १३८ शतक हैं। इनमें ४१ मुख्य और शेष अवान्तर शतक हैं। शतकों में उद्देशक तथा अक्षर-परिमाण इस प्रकार हैशतक उद्देशक अक्षर-परिमाण शतक उद्देशक अक्षर-परिमाण ३८८४१ ४५८५९ २३८१८ १० ९९०७ ३६७०२ ३२३३८ ७५३ ३२८०८ १० or my I w १ . २५६९१ २१९१४ १६०३३ १८६५२ २४९३५ ४८५३४ ३९८१२ १५९३९ समयावायाङ्ग, सूत्र ९३ तत्त्वार्थवार्तिक २२० वह व्याख्यापद्धति, जिसमें प्रत्येक श्लोक और सूत्र की स्वतंत्र व्याख्या की जाती है और दूसरे श्लोकों और सूत्रों से निरपेक्ष व्याख्या भी की जाती है। वह व्याख्यापद्धति छिन्नछेदनय के नाम से पहचानी जाती है। कपायपाहुड भाग १. पृ. १२५ [२०]
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy