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केवल-दर्शन समुत्पन्न होने पर सभी जीवों के रक्षा रूप दया के लिए तीर्थंकर पावन प्रवचन करते हैं और वह प्रवचन ही आगम है। इस प्रवचन का स्रोत केवल-ज्ञान, केवल-दर्शन है। इस तरह अंग आगम श्रमणसंस्कृति के प्रतिनिधि तथा आधारभूत ग्रन्थ हैं। व्याख्याप्रज्ञप्ति
द्वादशांगी में व्याख्याप्रज्ञप्ति का पांचवां स्थान है। यह आगम प्रश्नोत्तर शैली में लिखा हुआ है इसलिए इसका नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है। समावायाङ्ग और नन्दी में लिखा है कि व्याख्याप्रज्ञप्ति में ३६,००० प्रश्नों का व्याकरण है। दिगम्बरपरम्परा के आचार्य अकलंक ने, आचार्य पुष्पदंत और भूतबलि ने और आचार्य गुणधर' ने लिखा है कि व्याख्याप्रज्ञप्ति में ६०००० प्रश्नों का व्याकरण है। उसका प्राकत नाम'विहायपण्णत्ति' है किन्त प्रतिलिपिकारों ने विवाहपण्णत्ति और वियाहपण्णत्ति ये दोनों नाम भी दिए हैं। नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेव ने वियाहपण्णत्ति का अर्थ करते हए लिखा है –गौतम आदि शिष्यों को उनके प्रश्नों का उत्तर प्रदान करते हए श्रमण भगवान् महावीर ने श्रेष्ठतम विधि से जो विविध विषयों का विवेचन किया है, वह गणधर आर्य सुधर्मा द्वारा अपने शिष्य जम्बू को प्ररूपित किया गया। जिसमें विशद् विवेचन किया गया हो वह व्याख्याप्रज्ञप्ति है। ____ अन्य आगमों की अपेक्षा व्याख्याप्रज्ञप्ति आगम अधिक विशाल है। विषयवस्तु की दृष्टि से भी इसमें विविधता है। विश्वविद्या की ऐसी कोई भी अभिधा नहीं है, जिसकी प्रस्तुत आगम में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में चर्चा न की गई हो। प्रश्नोत्तरों के द्वारा जैन तत्त्वज्ञान, इतिहास की अनेक घटनाएं, विभिन्न व्यक्तियों का वर्णन
और विवेचन इतना विस्तृत किया गया है कि प्रबुद्ध पाठक सहज ही विशाल ज्ञान प्राप्त कर लेता है। इस दृष्टि से इसे प्राचीन जैनज्ञान का विश्वकोष कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी। इस आगम के प्रति जनमानस में अत्यधिक श्रद्धा रही है। इतिहास के पृष्ठ साक्षी हैं, श्रद्धालु श्राद्धगण भक्ति-भावना से विभोर होकर सद्गुरुओं के मुख से इस आगम को सुनते थे तो एक-एक प्रश्न एक-एक स्वर्ण-मुद्राएं ज्ञान-वृद्धि के लिए दान के रूप में प्रदान करते थे। इस प्रकार ३६,००० स्वर्ण-मुद्राएं समर्पित कर व्याख्याप्रज्ञप्ति को श्रद्धालुओं ने सुना है। इस प्रकार इस आगम के प्रति जनमानस में अपार श्रद्धा रही है। श्रद्धा के कारण ही व्याख्याप्रज्ञप्ति के पूर्व 'भगवती' विशेषण प्रयुक्त होने लगा और शताधिक वर्षों से तो 'भगवती' विशेषण न रहकर स्वतंत्र नाम हो गया है। वर्तमान में 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' की अपेक्षा 'भगवती' नाम अधिक प्रचलित है।'
समवायाङ्ग, सूत्र ९३ २. नन्दीसूत्र ८५
तत्त्वार्थवार्तिक १२० ४. पखंडागम, खण्ड १, पृष्ठ १०१
कषायपाहुड, प्रथम खण्ड, पृष्ठ १२५ (क) 'वि-विविधा, आ-अभिविधिना, ख्या-ख्यानाति भगवतो महावीरस्य गौतमादीन् विनेयान् प्रति
प्रश्नितपदार्थप्रतिपादनानि व्याख्याः, ताः प्रज्ञाप्यन्ते, भगवता सुधर्मस्वामिना जम्बूनामानमभि यस्याम्।" (ख) विवाह-प्रज्ञप्ति—अर्थात् जिसमें विविध प्रवाहों की प्रज्ञापना की गई है—यह विवाहप्रज्ञप्ति है। (ग) इसी प्रकार 'विवाहपण्णत्ति' शब्द की व्याख्या में लिखा है-'विवाधाप्रज्ञप्ति' अर्थात् जिसमें निर्वाध रूप से अथवा प्रमाण से अवाधित निरूपण किया गया है, वह विवाहपण्णत्ति है। महायान बौद्धों में प्रज्ञापारमिता जो ग्रन्थ है उसका अत्यधिक महत्त्व है अतः अष्ट प्राहसिका प्रज्ञापारमिता का अपर नाम भगवती मिलता है।
-देखिए-शिक्षा समुच्चय, पृ. १०४-११२ [१९]