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________________ ९६] पढमे सालिवग्गे : सेसा नव उद्देसगा प्रथम 'शालि' वर्ग : शेष नौ उद्देशक कन्द आदि के रूप में उत्पन्न शालि आदि जीवों का प्रथमोद्देशकानुसार निरूपण १-२. अह भंते ! साली वीही जाव जवजवाणं, एएसि णं जे जीवा कंदत्ताए वक्कमंति ते णं भंते ! जीवा कओहिंतो उववज्जति ? एवं कंदाहिगारेण सो चेव मूलुद्देसो अपरिसेसो भाणियब्वो जाव असतिं अदुवा अणंतखुत्तो। सेव भंते ! सेवं भंते ! त्ति। [उ.२, सू. १ प्र. ] भगवन् । शालि, व्रीहि, यावत् जवजव, इन सबके कन्द' रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [उ. २, सू. १ उ.] (गौतम ! ) 'कन्द' के विषय में, वही (पूर्वोक्त) मूल का समग्र उद्देशक, अनेक बार या अनन्त बार इससे पूर्व उत्पन्न हो चुके हैं,' (यहाँ तक) कहना चाहिए। (विशेष यह है कि यहाँ 'मूल' के स्थान में कन्द' पाठ कहना चाहिए।) 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरने लगे। ३-१. एवं खंधे वि उद्देसओ नेतव्यो। [उ. ३, सू. १] इसी प्रकार (प्रथम उद्देशकवत्) स्कन्ध का (तृतीय) उद्देशक भी जानना चाहिए। ४-१. एवं तयाए वि उद्देसो भाणितव्वो। [उ. ४, सू. १] इसी प्रकार (प्रथम उद्देशकवत्) 'त्वचा' का (चतुर्थ) उद्देशक भी कहना चाहिए। ५-१. साले वि उद्देसो भाणियव्वो। [उ. ५, सू. १] शाखा (शाल) के विषय में भी (पूर्ववत् समग्र पंचम) उद्देशक कहना चाहिए। ६-१. पवाले वि उद्देसो भाणियव्वो। [उ.६, सू. १] प्रवाल (कोंपल) के विषय में भी (पूर्ववत् समग्र छठा) उद्देशक कहना चाहिए। . ७-१. पत्ते वि उद्देसो भाणियव्वो। एए सत्त वि उद्देसगा अपरिसेसं जहा मूले तहा नेयव्वा।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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