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________________ वीसवां शतक : उद्देशक-१०] [८३ चौवीस दण्डकों और सिद्धों में द्वादश, नोद्वादश आदि पदों का यथायोग्य निरूपण ४३. [१] नेरइया णं भंते ! किं बारससमजिया, नोबारससमजिया, बारसएण य नोबारसएण य समज्जिया, बारसएहिं समज्जिया, बारसएहि य नोबारसएण य समज्जिया ? गोयमा ! नेरइया बारससमजिया वि जाव बारसएहि य नोबारसएण य समजिया वि। [४३-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव क्या द्वादशसमर्जित हैं, या नो-द्वादशसमर्जित हैं, अथवा द्वादशनो-द्वादशसमर्जित हैं, या अनेक द्वादश और नो-द्वादशसमर्जित हैं ? [४३-१उ.] गौतम ! नैरयिक द्वादश-समर्जित भी हैं और यावत् अनेक द्वादश और नो-द्वादशसमर्जित भी हैं। [२] से केणद्वेण जाव समजिया वि? गोयमा ! जे णं नेरइया बारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया बारसमसमज्जिया। जे णं . नेरइया जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं एक्कारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया नोबारससमज्जिया। जे णं नेरइया बारसएणं; अन्नेण य जहन्नेण एक्केणं वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं, एक्कारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया बारसएण य नोबारसएण य समज्जिया। जे णं नेरइया णेगेहिं बारसएहिं पवेसणगं पविसंति ते णं नेरतिया बारसएहिं समजिया। जे णं नेरइया णेगेहिं बारसएहिं; अन्नेण य जहन्नेण एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं एक्कारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया बारसएहि य नोबारसएणं य समज्जिया।से तेणठेणं जाव समजिया वि। __ [४३-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि नैरयिक द्वादशसमर्जित भी हैं, यावत् अनेकद्वादश और नो-द्वादशसमर्जित भी हैं ? [४३-२ उ.] गौतम ! जो नैरयिक (एक समय में एक साथ) बारह की संख्या में (नरक में जाकर) प्रवेश करते हैं, वे द्वादशसमर्जित हैं। जो नैरयिक जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे नो-द्वादशसमर्जित हैं । जो नैरयिक एक समय में बारह तथा जघन्य एक, दो, तीन तथा उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे द्वादश-नोद्वादशसमर्जित हैं । जो नैरयिक एक समय में अनेक बारह-बारह की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे अनेक-द्वादशसमर्जित हैं । जो नैरयिक एक समय में अनेक-बारह-बारह की संख्या में तथा जघन्य एक-दो-तीन और उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादश-नो-द्वादशसमर्जित हैं। हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि नैरयिक द्वादशसमर्जित यावत् अनेक-द्वादश तथा नोद्वादश-समर्जित कहलाते हैं। ४४. एवं जाव थणियकुमारा।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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