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________________ ८४] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [४४] इसी प्रकार (पांचों विकल्प) स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए। ४५. [१] पुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! पुढविकाइया नो बारसयसमज्जिया, नो नोबारसयसमजिया, नो बारसएण य नोबारसएण य समजिया, बारसएहिं समजिया वि, बारसएहि य नोबारसएण य समज्जिया वि। [४५-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक क्या द्वादश-समर्जित हैं, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ? _[४५-१ उ.] गौतम ! पृथ्वीकायिक न तो द्वादशसमर्जित हैं, न नो-द्वादशसमर्जित हैं और न ही वे द्वादशसमर्जित-नो-द्वादशसमर्जित हैं, किन्तु वे अनेक-द्वादशसमर्जित भी हैं और अनेक द्वादश-नो-द्वादशसमर्जित भी हैं। [२] से केणढेणं जाव समज्जिया वि? गोयमा ! जे णं पुढविकाइया णेगेहिं बारसएहिं पवेसगणं पविसंति ते णं पुढविकाइया बारसएहिं समज्जिया। जे णं पुढविकाइया णेगेहिं बारसएहिं; अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं एक्कारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं पुढविकाइया बारसएहि य नोबारसएण य समज्जिया। से तेणढेणं जाव समजिया वि।। - [४५-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि (पृथ्वीकायिक........." यावत् अनेकद्वादशसमर्जित भी हैं और और अनेक द्वादश-नो-द्वादश) समर्जित भी हैं ? [४५-२ उ.] गौतम ! जो पृथ्वीकायिक जीव (एक समय में एक साथ) अनेक द्वादश-द्वादश की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादशसमर्जित हैं और जो पृथ्वीकायिक जीव अनेक द्वादश तथा जघन्य एक, दो, तीन एवं उत्कृष्ट ग्यारह प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादश और एक नो-द्वादश-समर्जित हैं। इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक ........... यावत् अनेक द्वादश-नो-द्वादशसमर्जित भी हैं। ४६. एवं जाव वणस्सइकाइया। [४६] इसी प्रकार (के अभिलाप) वनस्पतिकायिक तक (कहने चाहिए)। ४७. बेइंदिया जाव सिद्धा जहा नेरइया। [४७] द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर सिद्धों तक नैरयिकों के समान समझना चाहिए। विवेचन-द्वादशसमर्जित आदि का स्वरूप—जो जीव एक समय में एक साथ बारह की संख्या में सामूहिक रूप से उत्पन्न हों, उन्हें द्वादशसमर्जित कहते हैं तथा जो जीव एक से लेकर ग्यारह तक एक साथ उत्पन्न हों, उन्हें नो-द्वादशसमर्जित कहते हैं। शेष कथन षट्कसमर्जित के समान समझना चाहिए। १. भगवती. विवेचन भा. ६ (पं. घेवरचन्दजी), २९३४
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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