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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३८] इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक (का अल्पबहुत्व समझना चाहिए।)
३९. एएसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं छक्केहिं समजिताणं, छक्केहि य नोछक्केण य समजियाणं कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा पुढविकाइया छक्केहिं समजिया, छक्केहि य नोछक्केण य समजिया संखेजगुणा। ____ [३९ प्र.] भगवन् ! अनेक षट्कसमर्जित और अनेक षट्क तथा नो-षट्कसमर्जित पृथ्वीकायिकों में कौन किससे (अल्प, बहुत, तुल्य) यावत् विशेषाधिक है ?
[३९ उ.] गौतम ! सबसे अल्प अनेक षट्कसमर्जित पृथ्वीकायिक हैं। अनेक षट्क और नो-षट्कसमर्जित पृथ्वीकायिक उनसे संख्यातगुणे हैं। ' [४०] एवं जाव वणस्सइकाइयाणं । [४०] इस प्रकार वनस्पतिकायिकों तक (जानना चाहिए।) ४१. बेइंदियाणं जाव वेमाणियाणं जेहा नेरइयाणं। [४१] द्वीन्द्रियों से लेकर वैमानिकों तक (का अल्पबहुत्व) नैरयिकों के समान (जानना चाहिए)।
४२. एएसि णं भंते ! सिद्धाणं छक्कसमजियाणं, नोछक्कसमजियाणं जाव छक्केहि य नोछक्केण य समजियाण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा सिद्धा छक्केहि य नोछक्केण य समज्जिया, छक्केहिं समज्जिया संखेजगुणा, छक्केण य नोछक्केण य समज्जिया संखेजगुणा, छक्कसमजिया संखेजगुणा, नोछक्कसमजिया संखेजगुणा। ____ [४२ प्र.] भगवन् ! इन षट्कसमर्जित, नो-षट्कसमर्जित, यावत् अनेक घटक और एक नो-षट्कसमर्जित सिद्धों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ?
_ [४२ उ.] गौतम ! अनेक षट्क और नो-षट्क से समर्जित सिद्ध सबसे थोड़े हैं। उनसे अनेक षट्कसमर्जित सिद्ध संख्यातगुणे हैं। उनसे एक षट्क और नो-षट्कसमर्जित सिद्ध संख्यातगुणे हैं। उनसे षट्कसमर्जित सिद्ध संख्यातगुणे हैं और उनसे भी नो-षट्कसमर्जित सिद्ध संख्यातगुणे हैं।
विवेचन—षट्कसमर्जित आदि से विशिष्ट चौवीस दण्डकों और सिद्धों का अल्पबहुत्वप्रस्तुत छह सूत्रों (३७ से,४२ तक) में जो षट्कसमर्जित आदि से विशिष्ट जीवों का अल्पबहुत्व बताया गया है, वह स्थान के अल्पत्व एवं बाहुल्य की अपेक्षा से समझना चाहिए। अन्य आचार्यों का कहना है कि वस्तुस्वभाव ही ऐसा है।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८००