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वीसवाँ शतक : उद्देशक - १०]
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कहलाते हैं । जो एक समय में एक साथ एक षट्क के रूप में (छह) उत्पन्न हुए हों, साथ ही एक साथ एक समय में एक से लेकर पाँच तक यानी सात, आठ, नौ, दस और ग्यारह तक उत्पन्न हुए हों, वे एक षट्क, एक नो - षट्कसमर्जित कहलाते हैं। जो एक समय में, एक साथ छह-छह के अनेक समूहों के रूप में उत्पन्न हुए हों, वे अनेकषट्कसमर्जित कहलाते हैं । जो एक समय में अनेक षट्क-समुदायरूप से और एकादि (एक से लेकर पांच तक) अधिक रूप से उत्पन्न हुए हों, वे अनेकषट्क और एक नो- षट्कसमर्जित कहलाते हैं ।
किन में कितने भंगों की प्राप्ति ? – नैरयिकों में ये पांचों भंग पाए जाते हैं, क्योंकि नैरयिकों में एक समय में एक से लेकर असंख्यात तक उत्पन्न होते हैं। असंख्यातों में भी ज्ञानीजनों के ज्ञान से षट्क आदि की व्यवस्था बन जाती है ।
एकेन्द्रिय जीवों में एक समय में एक साथ असंख्यात उत्पन्न होते हैं, इसलिए उनमें अनेक षट्कसमर्जित तथा अनेकषट्क एक नो- षट्कसमर्जित, ये दो भंग ही पाए जाते हैं।
शेष सब संसारी जीवों में पूर्वोक्त पांचों ही भंग पाए जाते हैं।
षट्कसमर्जित आदि से विशिष्ट चौवीस दण्डकों और सिद्धों के अल्पबहुत्व का यथायोग्य निरूपण
३७. एएसि णं भंते! नेरतियाणं छक्कसमज्जियाणं, नोछक्कसमज्जिताणं छक्केणं, य नोछक्केण: य समज्जियाणं, छक्केहिं समज्जियाणं, छक्केहि य नोछक्केण य समज्जियाणं कयरे कयरेहिंतो जा विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा नेरइया छक्कसमज्जिया, नोछक्कसमज्जिया संखेज्जगुणा, छक्केण यनो छक्केण य समज्जिया संखेज्जगुणा, छक्केर्हि समजिया असंखेज्जगुणा, छक्केहि य नोछक्केण य समज्जिया संखेज्जगुणा ।
[३७प्र.] भगवन् ! १ . षट्कसमर्जित, २. नो- षट्कसमर्जित ३. एक षट्क एक नो-षट्कसमर्जित ४. अनेक षट्कसमर्जित तथा ५. अनेक षट्क एक नो- षट्कसमर्जित नैरयिकों में कौन किन से (अल्प, बहुत, तुल्य) यावत् विशेषाधिक हैं ?
[३७ उ.] गौतम ! १. सबसे कम एक षट्कसमर्जित नैरयिक हैं, २. नो- षट्कसमर्जित नैरयिक उनसे संख्यातगुणे हैं, ३. एक षट्क और नो- षट्कसमर्जित नैरयिक उनसे संख्यातगुणे हैं, ४. अनेक षट्कसमर्जित नैरयिक उनसे असंख्यातगुणे हैं, और ५. अनेक षट्क और एक नो-षट्कसमर्जित नैरयिक उनसे संख्यातगुणे हैं। ३५. एवं जाव थणियकुमारा ।
१. (क) भगवती. विवेचन भा. ६ ( घेवरचन्दजी), पृ. २९३१
(ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७९९-८००
२. वही, पत्र ८००