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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३३] इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए। ३४. [१] पुढविकाइयाणं पुच्छा।
गोयमा ! पुढविकाइया नो छक्कसमजिया, नो नोछक्कसमज्जिया, नो छक्केण य नोछक्केण य समज्जिया, छक्केहिं समज्जिया वि, छक्केहि य नोछक्केण य समजिया वि।
[३४-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव षट्कसमर्जित हैं ? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् ।
[३४-१ उ.] गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव न तो षट्कसमर्जित हैं, न नो-षट्कसमर्जित हैं और न एक षट्क और एक नो-षट्क से समर्जित हैं; किन्तु अनेक षट्कसमर्जित हैं तथा अनेक षट्क और एक नो-षट्क से समर्जित भी हैं।
[२] से केणद्वेणं जाव समजिता वि?
गोयमा ! जे णं पुढविकाइया णेगेहिं छक्कएहिं पवेसणगं पविसंति ते णं पुढविकाइया छक्केहिं समज्जिया। जे णं पुढविकाइया णेगेहिं छक्कएहि; अन्नेणं य जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तिहिं वा, उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति ते णु पुढविकाइया छक्केहि य नोछक्केण य समज्जिया। से तेणढेणं जाव समजिया वि।
[३४-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि (पृथ्वीकायिक जीव यावत् अनेक षट्कसमर्जित हैं तथा अनेक षट्क और एक नो-षट्क-) समर्जित भी हैं ?
[३४-२ उ.] गौतम ! जो पृथ्वीकायिक जीव अनेक षट्क से प्रवेश करते हैं, वे अनेक षट्कसमर्जित हैं तथा जो पृथ्वीकायिक अनेक षट्क से तथा जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट पांच संख्या में प्रवेश करते हैं, वे अनेक षट्क और एक नो-षट्कसमर्जित कहलाते हैं । हे गौतम ! इसीलिए कहा गया है कि पृथ्वीकायिक जीव यावत् एक नो-घटक्समर्जित हैं। ... ३५. एवं जाव वणस्सइकाइया, बेइंदिया जाव वेमाणिया।
[३५] इसी प्रकार वनस्पतिकायिक तक समझना चाहिए और द्वीन्द्रिय से ले कर वैमानिकों तक पूर्ववत् जानना चाहिए।
३६. सिद्धा जहा नेरइया। [३६] सिद्धों का कथन नैरयिकों के समान है।
विवेचन-षट्कसमर्जित आदि की परिभाषा—जिसका छह का परिमाण हो, उसे षट्क कहते हैं। षट्क से यानी छह के समूह से जो समर्जित हों—अर्थात्-पिण्डित—एकत्रित हों, वह षट्कसमर्जित हैं। भाव यह है कि एक समय में एक साथ जो उत्पन्न होते हैं, यदि उनकी राशि छह हो तो वे षट्कसमर्जित कहलाते हैं। जो एक साथ एक समय में एक, दो, तीन, चार या पांच उत्पन्न हुए हों, वे नो-षट्कसमर्जित