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________________ वीसवाँ शतक : उद्देशक-९] [६७ अर्थात्-तपोलब्धि प्राप्त हो गई हो। यही विद्याचरणलब्धि है, जिसके प्रभाव से वह मुनि आकाश में शीघ्रगति से गमन कर सकता है। खममाणस्स–सहने वाले तपश्चर्या करने वाले को। विद्याचारण की शीघ्र, तिर्यक् एवं ऊर्ध्वगति-सामर्थ्य तथा विषय ३. विजाचारणस्स णं भंते ! कहं सीहा गती ? कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते ? गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव० जाव किंचिंविसेसाहिए परिक्खेवेणं, देवेणं महिड्डीए जाव महेसक्खे जाव 'इणामेव इणामेव' त्ति कटु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्छरा-निपाएहिं तिक्खुत्तो अणुपरियट्टित्ताणं हव्वमागच्छेज्जा, विजाचारणस्स णं गोयमा ! तहा सीहा गती, तहा सीहे गतिविसए पन्नत्ते। __ [३ प्र.] भगवन् ! विद्याचारण की शीघ्र गति कैसी होती है ? और उसका गति-विषय कितना शीघ्र होता है ? । [३ उ.] गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप, जो सर्वद्वीपों में (आभ्यन्तर है,) यावत् जिसकी परिधि (तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन से) कुछ विशेषाधिक है, उस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप के चारों ओर कोई महर्द्धिक यावत् महासौख्य-सम्पन्न देव यावत्—'यह चक्कर लगा कर आता हूँ' यों कहकर तीन चुटकी बजाए उसने समय में, तीन वार चक्कर लगा कर आ जाए, ऐसी शीघ्र गति विद्याचारण की है। उसका इस प्रकार का शीघ्रगति का विषय कहा है। ४. विजाचारणस्स णं भंते ! तिरियं केवतिए गतिविसए पन्नत्ते ? गोयमा ! से णं इओ एगेणं उप्पाएणं माणुसुत्तरे पव्वए समोसरणं करेति, माणु०, क० २ तहिं चेतियाइं वंदति, तहिं० वं० २ बितिएणं उप्पाएणं नंदिस्सरवरे दीवे समोसरणं करेति, नंदि० क० २ तहिं चेतियाई वंदति, तहि वं० २ तओ पडिनियत्तति, त० प० इहमागच्छति, इहमा० २ इहं चेतियाई वंदइ। विज्जाचारणस्स णं गोयमा ! तिरियं एवतिए गतिविसए पन्नत्ते। [४ प्र.] भगवन् ! विद्याचारण की तिरछी (तिर्यग्) गति का विषय कितना कहा है ? [४ उ.] गौतम ! वह (विद्याचारण मुनि) यहाँ से एक उत्पात (उड़ान) से मानुषोत्तरपर्वत पर समवरसण करता है (अर्थात् वहाँ जा कर ठहरता है)। फिर वहाँ चैत्यों (ज्ञानियों) की स्तुति करता है। तत्पश्चात् वहाँ से दूसरे उत्पात में नन्दीश्वरद्वीप में समवसरण (स्थिति) करता है, फिर वहाँ चैत्यों की वन्दना (स्तुति) करता है, तत्पश्चात् वहाँ से (एक ही उत्पात में) वापस लौटता है और यहाँ आ जाता है। यहाँ १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७९५ (ख) भगवती. उपक्रम. पृ. ४६३
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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