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________________ ६६ ] नवमो उद्देसओ : 'चारण' नौवाँ उद्देशक : चारण (-मुनि सम्बन्धी ) चारण मुनि के दो प्रकार : विद्याचारण और जंघाचारण १. कतिविधा णं भंते ! चारण पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा चारणा पन्नत्ता, तं जहा - विज्जाचारणा य जंघाचारणा य । [१ प्र.] भगवन् ! चारण कितने प्रकार के कहे हैं ? [१ उ.] गौतम ! चारण दो प्रकार के कहे हैं, यथा — विद्याचारण और जंघाचारण। विवेचन—चारण मुनि: स्वरूप और प्रकार-लब्धि के प्रभाव से आकाश में अतिशय गमन करने की शक्ति वाले मुनि को 'चारण' कहते हैं। चारण मुनि दो प्रकार के होते हैं— विद्याचारण और जंघाचारण। पूर्वगत श्रुत (शास्त्रज्ञान) से तीव्र गमन करने की लब्धि को प्राप्त मुनि 'विद्याचारण' कहलाते हैं और जंघा के व्यापार से गमन करने की लब्धि वाले मुनिराज को जंघाचारण कहते हैं। विद्याचारणलब्धि समुत्पन्न होने से विद्याचारण कहलाता है २. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चत्ति - विज्जाचारणे विज्जाचारणे ? गोयमा ! तस्स णं छट्ठं छट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं विज्जाए उत्तरगुणलद्धिं खममाणस्स विजाचारणलद्धी नामं लद्धी समुप्पज्जति, से तेणट्ठेणं जाव विज्जाचारणे विजाचारणे । [२ प्र.] भगवन् ! विद्याचारण मुनि को 'विद्याचारण' क्यों कहते हैं ? [२ उ.] अन्तर-(व्यवधान) रहित छट्ठ-छट्ट (बेले- बेले) के तपश्चरणपूर्वक पूर्व श्रुतरूप विद्या द्वारा उत्तरगुणलब्धि (तपोलब्धि) को प्राप्त मुनि को विद्याचारणलब्धि नाम की लब्धि उत्पन्न होती है। इस कारण से यावत् वे विद्याचारण कहलाते हैं। विवेचन — विद्याचारणलब्धि की प्राप्ति का उपाय — विद्याचारणलब्धि की प्राप्ति उसी मुनि को होती है, जिसने पूर्वों का विधिवत् अध्ययन किया हो तथा जिसने बीच में व्यवधान किये बिना लगातार बेलेबेले की तपस्या की हो एवं जिसे उत्तरगुण अर्थात् पिण्डविशुद्धि आदि उत्तरगुणों में पराक्रम करने से उत्तरगुणलब्धि, - १. (क) चरणं — गमनमतिशयवदाकाशे एषामस्तीति चारणाः । विद्या— श्रुतं तच्च पूर्वगतं, तत्कृतोपकाराश्चारणा विद्याचारणाः । जंघाव्यापारकृतोपकाराश्चारणा जंघाचारणाः । - भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७१४ (ख) 'अइसय-चरण - समत्था, जंघा - विज्जाहिं चारणा मुणओ । जंघाहिं जाइ पढमो, निस्सं काउं रविकरे वि ॥ १ ॥ ' —अ. वृत्ति, पत्र ७९४
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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