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________________ वीसवाँ शतक : उद्देशक-५] [४५ अस्पर्श। १९. भावपरमाणू णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! चउव्विधे पनत्ते, तं जहा—वण्णमंते गंधमंते रसमंते फासमंते। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरति। ॥वीसइमे सए : पंचमो उद्देसओ समत्तो॥२०-५॥ [१९ प्र.] भगवन् ! भावपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? [१९ उ.] गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा—वर्णवान्, गन्धवान्, रसवान्, और स्पर्शवान्। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन–परमाणु : द्रव्यादि की अपेक्षा से क्या है, क्या नहीं? — प्रस्तुत पांच सूत्रों (१५ से १९ सू. तक) में परमाणु के स्वरूप का द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से विश्लेषण किया गया है। द्रव्यपरमाणु : स्वरूप वर्णादिधर्म की विवक्षा किये बिना एक परमाणु को द्रव्यपरमाणु कहते हैं। क्योंकि यहाँ केवल द्रव्य की ही विवक्षा की गई है। अच्छेद्य-द्रव्यपरमाणु का शस्त्रादि द्वारा छेदन नहीं हो सकता, इसलिए वह अच्छेद्य है । अभेद्य-उसका सूई आदि द्वारा भेदन नहीं हो सकता, इसलिये अभेद्य है। अदाह्य—वह अग्नि आदि से जलाया नहीं जा सकता, इसलिये अदाह्य है। अग्राह्य—उसे हाथ आदि से पकड़ा नहीं जा सकता, इसलिए अग्राह्य है। क्षेत्रपरमाणु : स्वरूप—एक आकाशप्रदेश को क्षेत्रपरमाणु कहते हैं। अनर्द्ध-परमाणु के समसंख्यावाले अवयव नहीं होते, इसलिये वह अनर्द्ध कहलाता है । अमध्य-विषम संख्या वाले अवयव नहीं हैं, इसलिये अमध्य कहलाता है । अप्रदेश—इसके प्रदेश (अवयव) नहीं हैं, इसलिए अप्रदेश है। अविभाज्यपरमाणु का विभाजन या विभाग नहीं हो सकता, इसलिए वह अविभाग या अविभाज्य है। कालपरमाणु : स्वरूप—एक समय को कालपरमाणु कहते हैं । इसलिये एक समय में उसके लिये वर्णादि की विवक्षा नहीं होती। भावपरमाणु : स्वरूप-वर्णादिधर्म की प्रधानता की विवक्षापूर्वक परमाणु को भावपरमाणु कहते हैं। भावपरमाणु-वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श से युक्त होता है। ॥ वीसवाँ शतक : पंचम उद्देशक समाप्त॥ *** १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७८८ (ख) भगवती. विवेचन भा. ६ (पं. घेवरचन्दजी), पृ. २८८७
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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