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________________ ४४ ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अथवा 'कर्कश' और मृदु दोनों को बहुवचन में रख कर फिर ६४ भंग कहने चाहिये; यावत् अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष; यह अन्तिम भंग है। ये सब मिला कर अष्टस्पर्शी भंग २५६ होते हैं । इस प्रकार बादर परिणाम वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के सर्वसंयोगों के कुल १२९६ भंग होते हैं। विवेचन—बादर परिणामी अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के स्पर्श सम्बन्धी एक हजार दो सौ छियानवे भंग — इसके स्पर्श-सम्बन्धी चतु:संयोगी १६, पंचसंयोगी १२८, षट्संयोगी ३८४, सप्तसंयोगी ५१२, और अष्टसंयोगी २५६, ये सब मिला कर बादर अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के स्पर्श के १२९६ भंग होते हैं। एक परमाणु से लेकर सूक्ष्म अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक स्पर्श सम्बन्धी २९८ भंग होते हैं । परमाणु से लेकर बादर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के कुल ६४७० भंग होते हैं, जो पहले गिना दिये हैं। १५. कतिविधे णं भंते ! परमाणू पन्नत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे परमाणू पन्नत्ते, तं जहा — दव्वपरमाणू खेत्तपरमाणू कालपरमाणू भावपरमाणू। [१५ प्र.] भगवन् ! परमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? [१५ उ.] गौतम ! परमाणु चार प्रकार का कहा गया है यथा— द्रव्यपरमाणु, क्षेत्रपरमाणु, कालपरमाणु और भावपरमाणु। १६. दव्वपरमाणू णं भंते! कतिविधे पन्नते ! गोयमा ! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा— अच्छेजे अभेजे अउज्झे अज्झे । [१६ प्र.] भगवन् ! द्रव्यपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? [१६ उ.] गौतम ! (द्रव्यपरमाणु) चार प्रकार का कहा गया है यथा— अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य और अग्राह्य । १७. • खेत्तपरमाणू णं भंते! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा – अणड्ढे अमज्झे अपएसे अविभाइमे । [१७ प्र.] भगवन् ! क्षेत्रपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? [१७ उ.] गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है यथा— अनर्द्ध, अमध्य, अप्रदेश और अविभाज्य । १८. कालपरमाणू० पुच्छा । गोयमा ! चउव्विधे पन्नत्ते, तं जहा—अवण्णे अगंधे अरसे अफासे । [१८ प्र.] भगवन् ! कालपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? [१८ उ.] गौतम ! कालपरमाणु चार प्रकार का कहा गया है। यथा— अवर्ण, अगन्ध, अरंस और १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २, पृ. ८६९-७०
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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