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________________ वीसवाँ शतक : उद्देशक-५] [४३ (३) अथवा कदाचित् सर्वगुरु, एकदेश कर्कश, एकदेश मृद, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध, और एकदेश रूक्ष, इस प्रकार के 'गुरु' के साथ भी पूर्ववत् १६x४-६४ भंग कहने चाहिये। (४) अथवा कदाचित् सर्वलघु, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध, एकदेश रूक्ष; इस प्रकार 'लघु' के साथ भी पूर्ववत् १६४४-६४ भंग कहने चाहिये। (५) कदाचित् सर्वशीत, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इस प्रकार 'शीत' के साथ भी ६४ भंग कहने चाहिये। (६) कदाचित् सर्वउष्ण, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इस प्रकार 'उष्ण' के साथ भी ६४ भंग कहने चाहिये। (७) कदाचित् सर्वस्निग्ध, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण होता है; इस प्रकार 'स्निग्ध' के साथ भी ६४ भंग होते हैं। (८) कदाचित् सर्वरूक्ष, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण; इस प्रकार ‘रूक्ष' के साथ भी ६४ भंग कहने चाहिये। यावत् सर्वरूक्ष, अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, अनेकदेश शीत और अनेकदेश उष्ण होता है। इस प्रकार ये सब मिलकर ८४६४-५१२ भंग सप्तस्पर्शी (बादरपरिणामी अनन्तप्रदेशी स्कन्ध) के होते हैं। . यदि वह आठ स्पर्श वाला होता है, तो (१.I) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है (इत्यादि, इसके) चार भंग (कहने चाहिए) । (II) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और अनेकदेश उष्ण तथा एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, इत्यादि चार भंग कहने चाहिये। (III) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, एकदेश उष्ण एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इत्यादि चार भंग। (IV) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, ये चार भंग। इस प्रकार इन चार चतुष्कों के १६ भंग होते हैं। अथवा (२) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इस प्रकार 'गुरु' पद को एकवचन में और 'लघु' पद को बहुवचन में रखकर पूर्ववत् १६ भंग कहने चाहिये। (३) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, इसके भी १६ भंग (पूर्ववत्) होते हैं। (४) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इसके भी पूर्ववत् १६ भंग कहने चाहिये। - ये सब मिलाकर (१६४४=६४) चौसठ भंग 'कर्कश' और 'मृदु' को एकवचन में रखने से होते हैं। इन्हा भंगों में कर्कश' को एकवचन में और 'मृदु' को बहुवचन में रखकर ६४ भंग कहने चाहिये। अथवा उन्हीं भंगों में 'कर्कश' को बहुवचन में और 'मृदु' को एकवचन में रखकर पूर्ववत् ६४ भंग कहने चाहिये।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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