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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
कठिन शब्दार्थ — उवक्खाइज्जंति : दो अर्थ- (१) उपस्थित रहते हैं, (२) कहते हैं। विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रियजीवों का अल्प- बहुत्व
११. एएसि णं भंते! बेइंदियाणं जाव पंचेंदियाण य कयरे जाव विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसोसाहिया ।
सेवं भंते! सेवं भंते! जाव विहरति ।
॥ वीसइमे सए : पढमो उद्देसओ समत्तो ॥ २०-१ ॥
[११ प्र.] भगवन् ! इन (पूर्वोक्त) द्वीन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय जीवों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक
है ?
[११ उ.] गौतम ! सबसे अल्प पंचेन्द्रिय जीव हैं। उनसे चतुरिन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, उनसे त्रीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते
हैं ।
॥ वीसवाँ शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त ॥
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