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________________ १०] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कठिन शब्दार्थ — उवक्खाइज्जंति : दो अर्थ- (१) उपस्थित रहते हैं, (२) कहते हैं। विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रियजीवों का अल्प- बहुत्व ११. एएसि णं भंते! बेइंदियाणं जाव पंचेंदियाण य कयरे जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसोसाहिया । सेवं भंते! सेवं भंते! जाव विहरति । ॥ वीसइमे सए : पढमो उद्देसओ समत्तो ॥ २०-१ ॥ [११ प्र.] भगवन् ! इन (पूर्वोक्त) द्वीन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय जीवों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक है ? [११ उ.] गौतम ! सबसे अल्प पंचेन्द्रिय जीव हैं। उनसे चतुरिन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, उनसे त्रीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं । ॥ वीसवाँ शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त ॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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