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________________ सत्ताईसवाँ शतक प्रथम से लेकर ग्यारह उद्देशक तक छव्वीसवें शतक की वक्तव्यतानुसार ज्ञानावरणीयादि पापकर्मकरण प्ररूपणा ५६३ अट्ठाईसवाँ शतक प्रथम उद्देशक छव्वीसवें शतक में निर्दिष्ट ग्यारह स्थानों से जीवादि के पापकर्म-समर्जन एवं समाचरण का निरूपण ५६५ द्वितीय उद्देशक अनन्तरोपपन्नक चौवीस दण्डकों में छव्वीसवें शतकानुसार पापकर्मसमर्जन-प्ररूपणा ५६८ तीसरे से ग्यारहवाँ उद्देशक छब्बीसवें शतक के तृतीय से ग्यारहवें उद्देशकानुसार पापकर्मसमर्जन-प्ररूपणा'५७० उनतीसवाँ शतक प्रथम उद्देशक जीव और चौवीस दण्डकों में समकाल-विषमकाल की अपेक्षा पापकर्मवेदन के प्रारम्भ और अन्त का निरूपण ५७१ द्वितीय उद्देशक अनन्तरोपपन्नक चौवीस दण्डकों में ग्यारह स्थानों की अपेक्षा समकाल-विषमकाल को लेकर पापकर्मवेदन । आदि की प्ररूपणा ५७४ तीसरे के ग्यारह उद्देशक छव्वीसवें शतक के तीसरे से ग्यारहवें उद्देशकानुसार सम-विषम-कर्मप्रारम्भ एवं कर्मान्त का निरूपण ५७६ तीसवाँ शतक प्राथमिक ५७७ प्रथम उद्देशक समवसरण और उसके चार भेद ५७९, जीवों की ग्यारह स्थानों द्वारा क्रियावादिता आदि प्ररूपणा ५८२, चौवीस दण्डकों में ग्यारह स्थानों द्वारा क्रियावादी समवसरण-प्ररूपणा ५८४, क्रियावादादि चतुर्विध समवसरणगत जीवों की ग्यारह स्थानों में आयुष्यबन्ध-प्ररूपणा ५८६, चौवीस दण्डकवर्ती क्रियावादी आदि जीवों की ग्यारह स्थानों में आयुष्यबन्ध-प्ररूपणा ५९१, क्रियावादी आदि चारों में जीव और चौवीस दण्डकों की ग्यारह स्थानों द्वारा भव्याभव्य-प्ररूपणा ५९६ [१२४]
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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