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________________ संयतों में समुद्घात की प्ररूपणा ४८१, बत्तीसवाँ क्षेत्रद्वार : पंचविध संयतों के अवगाहन क्षेत्र की प्ररूपणा ४८१, तेतीसवाँ स्पर्शनाद्वार : पंचविध संयतों की क्षेत्र - स्पर्शना प्ररूपणा ४८२, चौतीसवाँ भावद्वार : पंचविध संयतों में औपशमिकादि भावों की प्ररूपणा ४८२, पैंतीसवाँ परिमाणद्वार : पंचविध संयतों में एक समयवर्ती परिमाण की प्ररूपणा ४८२, छत्तीसवाँ अल्पबहुत्वंद्वार : पंचविध संयतों का अल्पबहुत्व ४८४, प्रतिसेवना - दोषालोचनादि छह द्वार ४८४, प्रथम प्रतिसेवानाद्वार : प्रतिसेवना के दस भेद ४८५, द्वितीय आलोचनाद्वार : आलोचना के दस दोष ४८७, तृतीय आलोचनाद्वार : आलोचना करने तथा सुनने योग्य साधकों के गुण ४८६, चतुर्थ समाचारीद्वार : समाचारी के दस भेद ४८८, पंचम प्रायश्चित्तद्वार : प्रायश्चित के दस भेद ४८९, छठा तपाद्वार: तप के भेद-प्रभेद ४९१, अनशन तप के भेद - प्रभेद ४९१, अवमौदर्य तप के भेद-प्रभेदों की प्ररूपणा ४९३, भिक्षाचर्या, रसपरित्याग एवं कायक्लेश तप की प्ररूपणा ४९५, प्रतिसंलीनता तप के भेद एवं स्वरूप का निरूपण ४९६, षड्विध आभ्यन्तर तप के नाम निर्देश ४९९, प्रायश्चित्त तप के दस भेद ४९९, विनय तप के भेद-प्रभेदों का निरूपण ५००, वैयावृत्य और स्वाध्याय तप का निरूपण ५०५, ध्यान : प्रकार और भेद-प्रभेद ५०६, व्युत्सर्ग के भेद - प्रभेदों का निरूपण ५१३ । अष्टम उद्देश चौवीस दण्डकवर्ती जीवों की उत्पत्ति का विविध पहलुओं से निरूपण ५१६ नौवाँ उद्देशक चौवीस दण्डकगत भव्यजीवों की उत्पत्ति का अतिदेशपूर्वक निरूपण ५१९ दसवाँ उद्देशक चौवीस दण्डकगत अभव्य जीवों की उत्पत्ति का अतिदेशपूर्वक निरूपण ५१९ ग्यारहवाँ उद्देशक चौवीस दण्डकगत समयग्दृष्टि जीवों की उत्पत्ति का अतिदेशपूर्व निरूपण ५२० बारहवाँ उद्देशक चौवीस दण्डकगत मिथ्यादृष्टि जीवों की उत्पत्ति का अतिदेशपूर्वक निरूपण ५२१ छव्वीसवाँ शतक छव्वीसवें शतक का मंगलाचरण ५२५, छव्वीसवें शतक के ग्यारह उद्देशकों में ग्यारह द्वारों का निरूपण ५२५ प्रथम उद्देश प्रथम स्थान : जीव को लेकर पापकर्मबन्ध-प्ररूपण ५२६, द्वितीय स्थान : सलेश्य- अलेश्य जीवों की अपेक्षा पापकर्मबन्ध-निरूपण ५२७, तृतीय स्थान : कृष्ण-शुक्लपाक्षिक को लेकर पापकर्मबन्ध प्ररूपणा ५२८, चतुर्थ स्थान : सम्यक् - मिथ्या - मिश्रदृष्टि जीव की अपेक्षा पापकर्मबन्ध-निरूपण ५२९, पंचम स्थान : ज्ञानी जीव की अपेक्षा पापकर्मबन्ध-निरूपण ५२९, छठास्थान : अज्ञानी जीव की अपेक्षा पापकर्मबन्ध-निरूपण [ १२२ ]
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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