________________
कर्मप्रकृति-वेदन-निरूपण ४२८, तेइसवाँ कर्मोदीरणाद्वार : कर्मप्रकृति-उदीरणा-प्ररूपणा ४२९, चौवीसवां उपसम्पद-जहद-द्वार :स्वस्थानत्याग-परस्थान-सम्प्राप्ति निरूपण ४३१. पच्चीसवाँ संज्ञाद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में संज्ञाओं की प्ररूपणा ४३२, छब्बीसवाँ आहारद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थ में आहारंक-अनाहारक-निरूपण ४३३, सत्ताईसवाँ भवद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में भवग्रहण-प्ररूपणा ४३४, अट्ठाईसवाँ आकर्षकद्वार : एकभव-नानाभव ग्रहणीय आकर्ष-प्ररूपणा ४३५, उनतीसवाँ कालद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में स्थितिकाल-निरूपण ४३७, तीसवाँ अन्तरद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में काल के अन्तर का निरूपण ४३९, इकतीसवाँ समुद्घातद्वार : समुद्घातों की प्ररूपणा ४४०, बत्तीसवाँ क्षेत्रद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में अवगाहना क्षेत्र-प्ररूपण ४४१, तेतीसवाँ स्पर्शनाद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में क्षेत्रस्पर्शना-प्ररूपणा ४४२, चौतीसवाँ भावद्वार : औपशमिकादि भावों का निरूपण ४४३, पैंतीसवाँ परिणामद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों का एक समय का परिमाण ४४३, छत्तीसवाँ अल्पबहुत्वद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में अल्पबहुत्व प्ररूपण ४४५ । सप्तम उद्देशक
प्रथम प्रज्ञापनाद्वार : संयतों के भेद-प्रभेद का निरूपण ४४७, संयत-स्वरूप ४४८, द्वितीय वेदद्वार : पंचविध संयतों में सवेदी-अवेदी प्ररूपणा ४५०, तृतीय रागद्वार : पंचविध संयतों में सरागता-वीतरागता-निरूपण ४५०, चतुर्थ कल्पद्वार : पंचविध संयतों में स्थितिकल्पादि प्ररूपणा ४५१, पंचम चारित्रद्वार : पंचविध संयतों में पुलाकादि प्ररूपणा ४५२, छठा प्रतिसेवनाद्वार : पंचविध संयतों में प्रतिसेवन-अप्रतिसेवन प्ररूपणा ४५३, सप्तम ज्ञानद्वार : पंचविध संयतों में ज्ञान और श्रुताध्ययन की प्ररूपणा ४५४, अष्टम तीर्थद्वार : पंचविध संयतों में तीर्थअतीर्थ प्ररूपणा ४५५, नौवाँ लिंगद्वार : पंचविध संयतों में स्व-अन्य गृहिलिंग प्ररूपणा ४५६, दसवाँ शरीरद्वार : पंचविध संयतों में शरीर भेद-प्ररूपणा ४५६, ग्यारहवाँ क्षेत्रद्वार : पंचविध संयतों में कर्म-अकर्मभूमि की प्ररूपणा ४५७, बारहवाँ कालद्वार : पंचविध संयतों में अवसर्पिणी कालादि की प्ररूपणा ४५७, तेरहवाँ गतिद्वार : पंचविध संयतों में गतिप्ररूपणादि ४५८, चौदहवाँ संयमद्वार : पंचविध संयतों में अल्पबहुत्व सहित संयम-स्थान प्ररूपण ४६१, पन्द्रहवाँ निकर्ष (चारित्रपर्यव) द्वार : चारित्रपर्यव-प्ररूपणा ४६२, पंचविध संयतों में स्वस्थान-परस्थानचारित्रपर्यवों की अपेक्षा हीन-तुल्य-अधिक प्ररूपणा ४६२, सोलहवाँ योगद्वार : पंचविध संयतों में योग-प्ररूपणा ४६५, सत्तरहवाँ उपयोगद्वार : पंचविध संयतों में उपयोग-निरूपण ४६५, अठारहवां कषायद्वार : पंचविध संयतों में कषाय-प्ररूपणा ४६५, उन्नीसवाँ लेश्याद्वार : पंचविध संयतों में लेश्या-प्ररूपणा ४६६, वीसवाँ परिणामद्वार : वर्द्धमानादि-परिणाम-प्ररूपणा ४६७, इक्कीसवाँ बन्धद्वार-कर्म-प्रकृति-बंध-प्ररूपणा ४६९, बाईसवाँ वेदनद्वारकर्म-प्रकृतिवेदन की प्ररूपणा ४७०, तेईसवाँ कर्मोदीरणद्वार : कर्मों की उदीरणा की प्ररूपणा ४७०, चौवीसवाँ हान-उपसम्पद्वार : पंचविध संयतों के स्वथान-त्याग-परस्थान-प्राप्ति प्ररूपणा ४७१, पच्चीसवाँ संज्ञाद्वार : पंचविध संयतों में संज्ञा की प्ररूपणा ४७३, छव्वीसवाँ आहारद्वार : पंचविध संयतों में आहारक-अनाहारकप्ररूपणा ४७४, सत्ताईसवाँ भवद्वार ४७४, अट्ठाईसवाँ आकर्षद्वार : पंचविध संयतों के एक भव एवं नाना भवों की अपेक्षा आकर्ष की प्ररूपणा ४७५, उनतीसवां काल (स्थिति)-द्वार : एक-वचन और बहुतवचन में स्थितिप्ररूपणा ४७७, तीसवाँ अन्तरद्वार : पंचविध संयतों में काल का अन्तर ४७९, इकतीसवाँ समुद्घातद्वार : पंचविध
[१२१]