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________________ स्थिति एवं कालान्तर की प्ररूपणा ३६७, सर्व-देशकम्पक-निष्कम्पक परमाणु से अनन्तप्रदेशी स्कन्धों का अल्पबहुत्व ३७१, सर्व-देश-निष्कम्प परमाणुओं से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के अल्पबहुत्व की चर्चा ३७२, धर्मास्तिकायादि के मध्यप्रदेशों की संख्या का निरूपण ३७४, जीवास्तिकाय-मध्यप्रदेश तथा आकाशास्तिकाय प्रदेशों की अवगाहना की प्ररूपणा ३७५ । पंचम उद्देशक पर्यव-भेद एवं उसके विशिष्ट पहलुओं के विषय में पर्यवपद : अतिदेश ३७६, आनप्राणादि कालों में एकत्व-बहुत्व की अपेक्षा से आवलिका : संख्या-प्ररूपणा ३७८, स्तोकादि कालों में एकत्व-बहुत्व दृष्टि से आनप्राणादि से शीर्षप्रहेलिका पर्यन्त संख्या निरूपण ३८०, सागरोपमादि कालों में एकत्व-बहुत्व की अपेक्षा से पल्योपम-संख्या निरूपण ३८१, उत्सर्पिणी आदि कालों में एकत्व-बहुत्व की अपेक्षा से सागरोपम-संख्या निरूपण ३८२, पुद्गलपरिवर्तनादि कालों में एकत्व-बहुत्व दृष्टि से अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल की संख्या की प्ररूपणा ३८२, भूत-भविष्यत् तथा सर्वकाल में पुद्गलपरिवर्तन की अनन्तता ३८३, अनागत काल की अतीतकाल से समयाधिकता ३८३, सर्वाद्धा की अतीत तथा अनागत काल के समय से न्यूनाधिकता ३८४, निगोद के भेदप्रभेदों का निरूपण ३८५, औदयिकादि छह भावों का अतिदेशपूर्वक प्ररूपण ३८६ । छठा उद्देशक छठे उद्देशक की छत्तीस द्वार निरूपक गाथायें ३८७, प्रथमं प्रज्ञापनाद्वार : निर्ग्रन्थों के भेद-प्रभेद ३८७, द्वितीय वेदद्वार : पंचविध निर्गन्थों में स्त्रीवेदादि प्ररूपणा ३९१, तृतीय रागद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में सरागत्व वीतरागत्व प्ररूपणा ३९३, चतुर्थ कल्पद्वार पंचविध निर्ग्रन्थों में स्थितिकल्पादि-जिनकल्पादि-प्ररूपणा ३९४, पंचम चारित्रद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में चारित्र प्ररूपणा ३९६, छठा प्रतिसेवनाद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में मूलउत्तरगुण प्रतिसेवन-अप्रतिसेवन-प्ररूपणा ३९७, सप्तम ज्ञानद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में ज्ञान और श्रुताध्ययन की प्ररूपणा ३९८, आठवाँ तीर्थद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में तीर्थ-अतीर्थ प्ररूपणा ४०१, नौवाँ लिंगद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में स्वलिंग-अन्यलिंग-गृहीलिंग-प्ररूपणा ४०१, दसवाँ शरीरद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में शरीर-भेद-प्ररूपणा ४०२, ग्यारहवाँ क्षेत्रद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में कर्मभूमि-अकर्मभूमिप्ररूपणा ४०३, बारहवाँ कालद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीकालादि-प्ररूपणा ४०४, तेरहवाँ गतिद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थ की गति, पदवी तथा स्थिति की प्ररूपणा ४०८, चौदहवाँ लिंगद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों के संयमस्थान और उनका अल्पबहुत्व ४११, पन्द्रहवाँ निकर्ष (सन्निकर्ष) द्वार : पांचों प्रकार के निर्ग्रन्थों में अनन्त चारित्र पर्याय ४१२, पंचविध निर्ग्रन्थों के जघन्य-उत्कृष्ट चारित्र पर्यायों का अल्पबहुत्व ४१६, सोलहवाँ योगद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में योगों की प्ररूपणा ४१९, सत्तरहवाँ उपयोगद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में उपयोग-प्ररूपणा ४२०, अठारहवाँ कषायद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में कषायप्ररूपणा ४२१, उन्नीसवां लेश्याद्वार : लेश्याओं की प्ररूपणा ४२२, वीसवाँ परिणामद्वार : वर्धमानादि परिणामों की प्ररूपणा ४२४, इक्कीसवां द्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में कर्मप्रकृति-बंध-प्ररूपणा ४२७, बाईसवाँ द्वार : निर्ग्रन्थों में [१२०]
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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