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________________ प्ररूपणा २५५, वाणव्यन्तर देवों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के उत्पाद-परिमाण आदि वीस द्वारों की प्ररूपणा २५७ । तेईसवाँ उद्देशक गति की अपेक्षा ज्योतिष्क देवों के उपपात का निरूपण २५८, ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने वाले असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के उपपातादि वीस द्वारों की प्ररूपणा २५९, ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उपपातादि वीस द्वारों का निरूपण २६१, ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों में उपपात आदि वीस द्वारों की प्ररूपणा २६२ । चौवीसवाँ उद्देशक गति को लेकर सौधर्म-देव के उपपात का निरूपण २६४, सौधर्म-देव में उत्पन्न होने वाले असंख्येयसंख्येय-वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में उपपातादि वीस द्वारों की प्ररूपणा २६७, ईशान से सहस्रार देव तक में उत्पन्न होने वाले तिर्यंचों व मनुष्यों के उपपातादि वीस द्वारों की प्ररूपणा २६८, आनत से सर्वार्थसिद्ध तक के देवों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के उपपात-परिमाणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा २७० । पच्चीसवां शतक प्राथमिक २७४ पच्चीसवें शतक के उद्देशकों के नाम २७८ प्रथम उद्देशक लेश्याओं के भेद, अल्पबहुत्व आदि का अतिदेशपूर्वक निरूपण २७९, संसारी जीवों के चौदह भेदों का निरूपण २७९, जघन्य और उत्कृष्ट योग को लेकर संसारी जीवों का अल्पबहुत्व निरूपण २८०, प्रथम समयोत्पन्नक चतुर्विंशति दण्डकवर्ती दो जीवों का समयोगित्व-विषमयोगित्व निरूपण २८२, योग के पन्द्रह भेदों का निरूपण २८४, पन्द्रह प्रकार के योगों में जघन्य-उत्कृष्ट योगों का अल्पबहुत्व २८५ । द्वितीय उद्देशक द्रव्यों के भेद-प्रभेद तथा दोनों प्रकार के द्रव्यों की अनन्तता की प्ररूपणा २८७, जीव और चौवीस दण्डकवर्ती जीवों की अजीवद्रव्य परिभोगतानिरूपण २८८, असंख्येय लोक में अनन्त द्रव्यों की स्थिति २८९, लोक के एक प्रदेश में पुद्गलों के चय-छेद-उपचय-अपचय निरूपण २९०, शरीरादि के रूप में स्थितअवस्थित द्रव्य-ग्रहण प्ररूपणा २९१ । तृतीय उद्देशक संस्थान के छह भेदों का निरूपण २९५, छह संस्थानों की द्रव्यार्थ तथा प्रदेशार्थ रूप से अनन्तता प्ररूपणा २९५, छह संस्थानों का द्रव्यार्थादि रूप से अल्पबहुत्व २९६, संस्थानों के पांच भेद और उनकी अनन्तता का निरूपण २९७, यवमध्यगत परिमण्डलादि संस्थानों की परस्पर अनन्तता की प्ररूपणा २९९, सप्त नरकपृथ्वियों से लेकर ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक के पांचों यवमध्य संस्थानों में परस्पर अनन्तता-प्ररूपणा ३००, पांच संस्थानों में [११८]
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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