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थे। उसमें एक टब्बा व्याख्याप्रज्ञप्ति पर था । धर्मसिंह मुनि ने भगवती का एक यन्त्र भी लिखा था ।
टब्बा के पश्चात् अनुवाद प्रारम्भ हुआ। मुख्य रूप से आगम साहित्य का अनुवाद तीन भाषाओं में उपलब्ध है— अंग्रेजी, गुजराती और हिन्दी । भगवतीसूत्र के १४वें शतक का अनुवाद Hoernle Appendix ने किया और गुजराती अनुवाद पं. भगवानदास दोशी, पं. बेचरदास दोशी, गोपालदास जीवाभाई पटेल और घासीलालजी म. आदि ने किया । हिन्दी अनुवाद आचार्य अमोलकऋषिजी, मदनकुमार मेहता, पं. घेवरचन्दजी बांठिया आदि ने किया है।
अद्यावधिं मुद्रित भगवतीसूत्र
सन् १९१८-२१ में व्याख्याप्रज्ञप्ति अभयदेव वृत्ति सहित धनपतसिंह रायबहादुर द्वारा बनारस से प्रकाशित हुई जो १४ शतक तक ही मुद्रित हुई थी । सन् १९१८ से १९२१ में अभयदेव वृत्ति सहित आगमोदय समिति बम्बई से व्याख्याप्रज्ञप्ति प्रकाशित हुई है। सन् १९३७ - ४० में ऋषभदेवजी केशरीमल जैन श्वेताम्बर संस्था रतलाम से अभयदेववृत्ति सहित चौदह शतक प्रकाशित हुए। विक्रम संवत् १९७४-१९७९ में छट्ठे शतक तक अभयदेत्रवृत्ति व गुजराती अनुवाद के साथ पं. बेचरदास दोशी का अनुवाद जिनागम प्रकाशन सभा, बम्बई से प्रकाशित हुआ और विक्रम संवत् १९८५ में भगवती शतक सातवें से पन्द्रहवें शतक तक मूल व गुजराती अनुवाद साथ भगवानदास दोशी ने गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद से प्रकाशित किया । १९८८ में जैन साहित्य प्रकाशन ट्रस्ट अहमदाबाद से मूल व गुजराती अनुवाद प्रकाश में आया।
सन् १९३८ में गोपालदास जीवाभाई पटेल ने भगवती का संक्षेप में सार गुजराती छायानुवाद के साथ जैन साहित्य प्रकाशन समिति अहमदाबाद से प्रकाशित करवाया ।
आचार्य अमोलकऋषिजी म. ने बत्तीस आगमों के हिन्दी अनुवाद के साथ प्रस्तुत आगम का भी हिन्दी अनुवाद हैदराबाद से प्रकाशित करवाया ।
विक्रम संवत् २०११ में मदनकुमार मेहता ने भगवतीसूत्र शतक एक से वीस तक हिन्दी में विषयानुवाद श्रुत- प्रकाशन मन्दिर कलकत्ता से प्रकाशित करवाया ।
सन् १९३५ में भगवती विशेष पद व्याख्या दानशेखर द्वारा विरचित ऋषभदेवजी केशरीमल जी जैन श्वेताम्बर संस्था रतलाम से प्रकाशित हुई है।
सन् १९३१ में हिन्दी और गुजराती अनुवाद के साथ पूज्य घासीलालजी म. द्वारा विरचित संस्कृत व्याख्या जैन शास्त्रोद्धार समिति राजकोट से अनेक भागों में प्रकाशित हुई ।
विक्रम संवत् १९१४ में पंडित बेचरदास जीवराज दोशी द्वारा सम्पादित "विवाहपण्णत्तिसुत्तं" प्रकाशित हुआ। सन् १९७४ से ‘“विवाहपण्णत्तिसुत्तं" के तीन भाग महावीर जैन विद्यालय बम्बई से मूल रूप में प्रकाशित हुए हैं। इस प्रकाशन की अपनी मौलिक विशेषता है । इसका मूल पाठ प्राचीनतम प्रतियों के आधार से तैयार किया गया है। पाठान्तर और शोधपूर्ण परिशिष्ट भी दिये गये हैं । शोधार्थियों के लिए प्रस्तुत आगम अत्यन्त उपयोगी है।
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