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________________ विक्रम संवत् २०२१ में मुनि नथमलजी द्वारा सम्पादित भगवई सूत्र का मूल पाठ जैन विश्वभारती लाडनूं से प्रकाशित हुआ है। इस प्रति की यह विशेषता है कि इसमें जाव शब्द की पूर्ति की गई है। "सुत्तागमे" में मुनि पुफ्फभिक्खुजी ने ३२ आगमों के साथ भगवती का मूल पाठ भी प्रकाशित किया है। संस्कृतिरक्षक संघ सैलाना से "अंग सुत्ताणि" के भागों में भी मूल रूप में भगवतीसूत्र प्रकाशित है। भगवतीसूत्र का हिन्दी अनुवाद विवेचन के साथ पण्डित घेवरचन्दजी बांठिया द्वारा सम्पादित ७ भाग "साधुमार्गी संस्कृति रक्षक संघ सैलाना" से प्रकाशित हुए। विवेचन संक्षिप्त और सारपूर्ण है। भगवतीसूत्र पर आचार्य श्री जवाहरलालजी म.सा. और सागरानन्द सूरीश्वरजी के प्रवचनों के भी अनेक भाग प्रकाशित हुए हैं। पर वे प्रवचन सम्पूर्ण भगवतीसूत्र पर नहीं हैं । एक लेखक ने भगवती पर शोधप्रबन्ध भी अंग्रेजी में प्रकाशित किया है और तेरापंथी आचार्य जीतमलजी ने भगवती की जोड़ लिखी थी, उसका भी प्रथम भाग लाडनूं से प्रकाशित हो चुका था। प्रस्तुत आगम स्वर्गीय महामहिम युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी महाराज के कुशल नेतृत्व में आगमबत्तीसी का कार्य प्रारम्भ हुआ। यह कार्य अनेक मूर्धन्य मनीषियों के सहयोग से शीघ्रातिशीघ्र सम्पादित कर पाठकों के करकमलों में पहुँचाने का निर्णय लिया गया। पण्डितवर मधुरवक्ता बहुश्रुत श्री अमरमुनिजी ने यह अनुवाद किया है। श्री अमरमुनिजी महाराज एक प्रतिभासम्पन संतरत्न हैं। आप आचार्य सम्राट् आत्मारामजी महाराज के पौत्र शिष्य हैं और भण्डारी श्री पद्मचन्द्रजी महाराज के सुशिष्य हैं। श्री अमरमुनिजी एक सफल प्रवक्ता भी हैं। उनकी विमल वाणी में प्रेरणा है। प्रकृति से उनकी वाणी में सहज मधुरता है। जब वे प्रवचन करते हैं तो श्रोता आनन्द से झूम उठते हैं । जब उनकी संगीत की स्वरलहरियाँ झनझनाती हैं तो श्रोताओं के हृदयकमल खिल उठते हैं। यही कारण है कि आप 'वाणी के जादूगर' के रूप में विश्रुत हैं। आपने लघुवय में संयमसाधना की ओर कदम बढ़ाये और गुरु-चरणों में बैठकर आगमों का अध्ययन किया। आपकी प्रतिभा को निहार कर स्वर्गीय उपाध्याय श्री फूलचन्दजी महाराज ने आपको 'श्रुतवारिधि' की उपाधि से समलंकृत किया। आपकी प्रबल प्रेरणा से उत्प्रेरित होकर पंजाब, हरियाणा और देहली आदि में यत्र-तत्र धर्मस्थानक और विद्यालयों की संस्थापना हुई। आपके प्रवचनों में जैन और अजैन सभी विशाल संख्या में समुपस्थित होते हैं। इसीलिए विश्वसन्त उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी म. ने मेरठ में आपको 'उत्तरभारत केसरी' की उपाधि प्रदान की। आपसे समाज को बहुत कुछ आशा है। जहाँ आप प्रवचनकार हैं, कवि हैं, गायक हैं, वहाँ आप एक कुशल सम्पादक भी हैं। आपने आचार्यप्रवर भी आत्मारामजी महाराज द्वारा लिखित "जैनतत्वकलिका" और जैनागमों में अष्टांग योग पर लिखित 'जैनयोग : साधना और सिद्धान्त' ग्रन्थों का सुन्दर सम्पादन किया है। "व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र" में आपने बहुत सुन्दर सम्पादन कला का चमत्कार प्रदर्शित किया है। आपने प्रस्तुत आगम के प्रत्येक शतक में सर्वप्रथम संक्षेप में सार दिया है, जिसके पाठक उस शतक में आए हुए विषय को सहज रूप में समझ सकता है। भावानुवाद के साथ यत्र-तत्र विवेचन भी किया है। विवेचन विषयवस्तु को स्पष्ट करने के लिए बहुत उपयोगी है। यह विवेचन न अति संक्षिप्त है और न अधिक विस्तृत ही। इस विवेचन में प्राचीन टीकाओं का भी यत्र-तत्र [१०८]
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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