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________________ ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-१० [२२-१] द्रव्य से—अधोलोक-क्षेत्रलोक में अनन्त जीवद्रव्य हैं, अनन्त अजीवद्रव्य हैं, और अनन्त जीवाजीवद्रव्य हैं। [२] एवं तिरियलोयखेत्तलोए वि। [२२-२] इसी प्रकार तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक में भी जानना चाहिए। [३] एवं उड्डलोयखेत्तलोए वि। [२२-३] इसी प्रकार ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक में भी जानना चाहिए। २३. दवओ ण अलोए णेवत्थि जीवदव्वा, नेवत्थि अजीवदव्वा, नेवत्थि जीवाजीवदव्वा, एगे अजीवदव्वस्स देसे जाव सव्वागासअणंतभागूणे। [२३] द्रव्य से अलोक में जीवद्रव्य नहीं, अजीवद्रव्य नहीं और जीवाजीवद्रव्य भी नहीं, किन्तु अजीवद्रव्य का एक देश है, यावत् सर्वाकाश के अनन्तवें भाग न्यून है। २४. [१] कालओ णं अहेलोयखेत्तलोए न कदायि नासि जाव निच्चे। • [२४-१] काल से—अधोलोक-क्षेत्रलोक किसी समय नहीं था—ऐसा नहीं; यावत् वह नित्य है। [२] एवं जाव अलोगे। [२४-२] इसी प्रकार यावत् अलोक के विषय में भी कहना चाहिए। २५. भावओ णं अहेलोगखेत्तलोए अणंता वण्णपजवा जहा खंदए (स. २ उ. १ सु. २४[१]) जाव अणंता अगरुयलहुयपज्जवा। __[२५-१] भाव से—अधोलोक-क्षेत्रलोक में 'अनन्तवर्णपर्याय' है, इत्यादि, द्वितीय शतक के प्रथम उद्देशक (सू. २४-१) में वर्णित स्कन्दक-प्रकरण के अनुसार जानना चाहिए, यावत् अनन्त अगुरुलघु-पर्याय [२] एवं जाव लोए। [२५-२] इसी प्रकार यावत् लोक तक जानना चाहिए। [३] भावओ णं अलोए नेवत्थि वण्णपज्जवा जाव नेवत्थि अगरुयलहुयपज्जवा, एगें अजीवदव्वदेसे जाव अणंतभागूणे। [२५-३] भाव से अलोक में वर्ण-पर्याय नहीं, यावत् अगुरुलघु-पर्याय नहीं है, परन्तु एक अजीवद्रव्व का देश है, यावत् वह सर्वाकाश के अनन्तवें भाग कम है। विवेचन द्रव्य, काल और भाव से लोकालोक-प्ररूपणा–प्रस्तुत तीन सूत्रों (२२ से २४ तक) में द्रव्य, काल और भाव की अपेक्षा से लोक और अलोक की प्ररूपणा की गई है।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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