SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र लोक की विशालता की प्ररूपणा २६. लोए णं भंते ! के महालए पण्णत्ते ? गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव० जाव' परिक्खेवेणं। तेणं कालेणं तेणं समएणं छ देवा महिड्डीया जाव महेसक्खा जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए मंदरचूलियं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिढेजा। अहे णं चत्तारि दिसाकुमारिमहत्तरियाओ चत्तारि बलिपिंडे गहाय जंबुद्दीवस्सं दीवस्स चउसु वि दिसासु बहियाभिमुहीओ ठिच्चा ते चत्तारि बलिपिंडे जमगसमगं बहियाभिमुहे पक्खिवेज्जा। पभू णं गोयमा ! तओ एगमेगे देवे ते चत्तारि बलिपिंडे धरणितलसंपत्ते खिप्पामेव पडिसाहरित्तए। ते णं गोयमा! देवा ताए उक्किट्ठाए जाव' देवगतीए एगे देवे पुरत्थाभिमुहे पयाते, एवं दाहिणाभिमुहे, एवं पच्चत्थाभिमुहे, एवं उत्तराभिमुहे, एवं उड्डाभिमुहे, एगे देवे अहोभिमुहे पयाते। तेण कालेणं तेणं समएणं वाससहस्साउए दारए पयाए। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पहीणा भवंति, णो चेव णं ते देवा लोगंतं संपाउणंति। तए णं तस्स दारगस्स आउए पहीणे भवति, णो चेव णं जाव संपाउणंति। तए णं तस्स दारंगस्स अट्ठिमिंजा पहीणा भवंति, णो चेव णं ते देवा लोगंतं संपाउणंति। तए णं तस्स दारगस्स आसत्तमे वि कुलवंसे पहीणा भवति, नो चेव णं ते देवा लोगंतं संपाउणंति। तए णं तस्स दारगस्स नाम-गोते वि पहीणे भवति, नो चेव णं ते देवा लोगंतं संपाउणंति। "तेसि णं भंते ! देवाणं किं गए बहुए, अगए बहुए ?' - 'गोयमा ! गए बहुए, नो अगए बहुए, गयाओ से अगए असंखेज्जइभागे, अगयाओ से गए असंखेजगुणे। लोए णं गोयमा ! एमहालए पन्नत्ते।' [२३ प्र.] भगवन् ! लोक कितना बड़ा (महान् ) कहा गया है। [२३ उ.] गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप, समस्त द्वीप-समुद्रों के मध्य में है, यावत् इसकी परिधि तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाइस धनुष और साढे तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। (लोक की विशालता के लिए कल्पना करो कि-) किसी काल और किसी समय महर्द्धिक यावत् महासुख-सम्पन्न छह देव, मन्दर (मेरु) पर्वत पर मन्दर की चूलिका के चारों ओर खड़े रहें और नीचे चार दिशाकुमारी देवियां (महत्तरिकाएँ) चार बलिपिण्ड लेकर जम्बूद्वीप नामक द्वीप की (जगती पर) चारों दिशाओं १. 'जाव' पद सूचित पाठ-"सव्वदीवसमुदाणं अब्भंतरए सव्वखुड्डुए वट्टे तेल्लापूपसंठाणसंठिए वट्टे रहचक्क वालसंठाणसंठिए वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए वट्टे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए एक्कं जोयेणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणे तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस यसहस्साई दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं यधणुसयं तेरस अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचि विसेसाहियं ति।" -भगवती. अ. व पत्र ५२७ २. 'जाव' पद सूचित पाठ-"तुरियाए चवलाए चंडाए सीहाए उडुयाए जयणाए छेयाए दिव्वाए।" -भगवती. अ. वृ; पत्र ५२७
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy