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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
उनमें जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के हैं यथा- -रूपी अजीव और अरूपी अजीव । रूपी अजीवों का वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। अरूपी अजीव पांच प्रकार — कहे गये हैं- यथा (१) धर्मास्तिकाय का देश, (२) धर्मास्तिकाय का प्रदेश, (३) अधर्मास्तिकाय का देश, (४) अधर्मास्तिकाय का प्रदेश और (५) अद्धा समय। १८. तिरियलोगखेत्तलोगस्स णं भंते ! एगम्मि आगासपदेसे किं जीवा० ?
एवं जहा अहेलोगखेत्तलोगस्स तहेव ।
[१८ प्र.] भगवन् ! क्या तिर्यग्लोक - क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश में जीव हैं; इत्यादि प्रश्न ।
[१८ उ.] गौतम ! जिस प्रकार अधोलोक - क्षेत्रलोक के विषय में कहा है, उसी प्रकार तिर्यग्लोकक्षेत्रलोक के विषय में समझ लेना चाहिए ।
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१९. एवं उड्डलोगखेत्तलोगस्स वि, नवरं अद्धासमओ नत्थि, अरूवी चउव्विहा ।
[१९] इसी प्रकार ऊर्ध्वलोक- क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश के विषय में भी जानना चाहिए । विशेष इतना है कि वहाँ अद्धा-समय नहीं है, (इस कारण ) वहाँ चार प्रकार के अरूपी अजीव हैं।
२०. लोगस्स जहा—अहेलोगखेत्तलोगस्स एगम्मि आगासपदेसे ।
[२०] लोक के आकाशप्रदेश के विषय में भी अधोलोक - क्षेत्रलोक के आकाशप्रदेश के कथन के समान जानना चाहिए ।
२१. अलोगस्स णं भंते ! एगम्मि आगासपएसे० पुच्छा ।
गोयमा ! नो जीवा, नो जीवदेसा, तं चेव जाव अणंतेहिं अगरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते सव्वागासस्स अनंतभागणे ।
[ २१ प्र.] भगवन् ! क्या अलोक के एक आकाशप्रदेश में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[२१ उ. ] गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, जीवों के देश नहीं हैं, इत्यादि पूर्ववत् जानना चाहिए; यावत् अलोक अनन्त अगुरुलघुगुणों से संयुक्त है और सर्वाकाश के अनन्तवें भाग न्यून है ।
विवेचन—अधोलोकादि के एक आकाशप्रदेश में जीवादि की प्ररूपणा - प्रस्तुत ५ सूत्रों (१७ से २१ तक) में अधोलोक, तिर्यग्लोक, ऊर्ध्वलोक, लोक और अलोक के एक आकाशप्रदेश में जीव, जीव के देश-प्रदेश, अजीव, अजीव के देश-प्रदेश आदि के विषय में प्ररूपणा की गई है।
त्रिविध क्षेत्रलोक - अलोक में द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव की अपेक्षा से जीवाजीवद्रव्य
२२. [१] दव्वओ णं अहेलोगखेत्तलोए अणंता जीवदव्वा, अनंता अजीवदव्वा, अनंता जीवाजीवदव्वा ।
१. वियाहपण्णत्ति (मूलपाठ - टिप्पण), भा. २, पृ. ५२८-५२९