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________________ ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-१० शेष ६ बोल हैं। लोक में धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय दोनों अखण्ड होने से इस दोनों में देश नहीं हैं। इसलिए धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय के प्रदेश, अधर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं। लोक में आकाशास्तिकाय सम्पूर्ण नहीं, किन्तु उसका एक भाग है। इसलिए कहा गया-आकाशास्तिकाय का प्रदेश तथा उसके देश हैं । लोक में काल भी है। ____ अलोक में एकमात्र अजीवद्रव्य का देशरूप अलोकाकाश है, वह भी अगुरुलघु है । वह अनन्त अगुरुलघु गुणों से संयुक्त आकाश के अनन्तवें भाग न्यून है। पूर्वोक्त सातों बोल अलोक में नहीं हैं। अधोलोकादि के एक प्रदेश में जीवादि की प्ररूपणा १७. अहेलोगखेत्तलोगस्स णं भंते। एगम्मि आगासपएसे किं जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपएसा ? गोयमा ! नो जीवा, जीवदेसा वि जीवपदेसा वि अजीवा वि अजीवदेसा वि अजीवपदेसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं एगिदियदेसा; अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियस्स देसे, अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियाण य देसा; एवं मज्झिल्लविरहिओ जाव अणिदिएस जाव अहवा एगिंदियदेसा य अणिंदियाण देसा। जे जीवपदेसा ते नियमं एगिदियपएसा, अहवा एगिदियपएसा य बेइंदियस्स पएसा, अहवा एगिदियपएसा य बेइंदियाण य पएसा, एवं आदिल्लविरहिओ जाव पंचिंदिएसु, अणिदिएसु तिय भंगो। जे अजीवा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा--रूवी अजीवा य, अरूवी अजीवा य। रूवी तहेव। जे अरूवी अजीवा ते पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–नो धम्मत्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे १, धम्मत्थिकायस्स पदेसे २, एवं अधम्मत्थिकायस्स वि ३-४, अद्धासमए ५। [१७ प्र.] भगवन् ! अधोलोक-क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश में क्या जीव हैं; जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं या अजीव के प्रदेश हैं ? _[१७ उ.] गौतम ! (वहाँ) जीव नहीं, किन्तु जीवों के देश हैं, जीवों के प्रदेश भी हैं, तथा अजीव हैं, अजीवों के देश हैं और अजीवों के प्रदेश भी हैं। इनमें जो जीवों के देश हैं, वे नियम से (१) एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं, (२) अथवा एकेन्द्रियों के देश और द्वीन्द्रिय जीव का एक देश है, (३) अथवा एकेन्द्रिय जीवों के देश और द्वीन्द्रिय जीव के देश हैं; इसी प्रकार मध्यम भंग-रहित (एकेन्द्रिय जीवों के देश और द्वीन्द्रिय जीव के देश—इस मध्यम भंग से रहित), शेष भंग, यावत् अनिन्द्रिय तक जानना चाहिए; यावत् अथवा एकेन्द्रिय जीवों के देश और अनिन्द्रिय जीवों के देश हैं। इनमें जो जीवों के प्रदेश हैं, वे नियम से एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं, अथवा एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश और एक द्वीन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं, अथवा एकेन्द्रिय जीवों का प्रदेश और द्वीन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं। इसी प्रकार यावत् पंचेन्द्रिय तक प्रथम भंग को छोड़ कर दो-दो भंग कहने चाहिए; अनिन्द्रिय में तीनों भंग कहने चाहिए। . १. भगवती, अः वृत्ति, पत्र ५२४
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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