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उन्नीसवाँ शतक : उद्देशक - ४
१२. सिय भंते ! नेरइया अप्पस्सवा महाकिरिया अप्पवेदणा अप्पनिज्जरा ?
णो इट्ठे समट्ठे १२ ।
[१२ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक अल्पास्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले होते हैं ?
[१२ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
१३. सिय भंते ! नेरइया अप्पस्सवा अप्पकिरिया महावेयणा महानिज्जरा ?
नो इणट्ठे समट्ठे १३ ॥
[१३ प्र.] भगवन्! क्या नैरयिक अल्पास्रव, अल्पक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं ?
[१३ उ.] यह अर्थ समर्थ नहीं है।
१४. सिय भंते! नेरतिया अप्पस्सवा अप्पकिरिया महावेदणा अप्पनिज्जरा ?
नो इणट्ठे समट्ठे १४ ।
[ १४ प्र.] भगवन्! क्या नैरयिक अल्पास्रव, अल्पक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? [१४ उ. ] यह अर्थ समर्थ नहीं है।
१५. सिय भंते ! नेरइया अप्पसवा अप्पकिरिया अप्पवेदणा महानिज्जरा ?
नो इणट्ठे समट्ठे १५ ।
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[१५ प्र.] भगनन् ! नैरयिक अल्पास्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ?
[१५ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
१६. सिय भंते ! नेरतिया अप्पस्सवा अप्पकिरिया अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा ?
णो इणट्ठे समट्ठे १६ । एते सोलस भंगा।
[१६ प्र.] भगवन् ! नैरयिक कदाचित् अल्पास्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? [१६ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
ये सोलह भंग (विकल्प) हैं।
विवेचन — महास्त्रवादि चतुष्क के सोलह भंगों में नैरयिक का भंग - प्रस्तुत १६ सूत्रों में महास्त्रवादि चतुष्क के १६ -भंग दिये गए हैं। जीवों के शुभाशुभ परिणामों के अनुसार आस्रव, क्रिया, वेदना और निर्जरा, ये चार बातें होती हैं। परिणामों की तीव्रता के कारण ये चारों महान् रूप में और परिणामों की मन्दता के कारण ये चारों अल्प रूप में परिणत होती हैं। किन जीवों में किस की महत्ता और किस की अल्पता पाई जाती है ? यह बताने हेतु आस्रवादिचार के सोलह भंग बनते हैं । सुगमता से समझने के लिए रेखाचित्र दे रहे हैं