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________________ अठारहवाँ शतक : उद्देशक - १० ७६१ द्रव्यामाष और कालमास कहा जाता है। कालरूप मास श्रवण से लेकर आषाढ तक १२ महीनों का है, वह श्रमणों के लिए अभक्ष्य है । द्रव्यमान में जो सोना-चाँदी तोलने का माशा है ( १२ माशे का एक तोला), वह अभक्ष्य है, किन्तु धान्यरूपमाष (उड़द ) शस्त्र - परिणत, एषणीय, याचित और लब्ध हो तो श्रमणों के लिए भक्ष्य है, किन्तु जो शस्त्रपरिणत, अनेषणीय, अयाचित और अलब्ध हैं, वे अभक्ष्य - अग्राह्य हैं।" 'कुलत्था' शब्द का विश्लेषण - 'कुलत्था' प्राकृतभाषा का शब्द है, संस्कृत में इसके दो रूप बनते हैं-- (१) कुलस्था और (२) कुलत्था । इन्हें ही दूसरे शब्दों में स्त्रीकुलस्था और धान्यकुलत्था कहते हैं । स्त्री कुलस्था तीन प्रकार की हैं, जो श्रमण के लिए अभक्ष्य हैं । धान्यकुलत्था कुलथी नामक धान को कहते हैं । वह अशस्त्रपरिणत, अनेषणीय, अयाचित और अलब्ध हो तो श्रमणों के लिए अकल्पनीय अग्राह्य (सदोष) होने से अभक्ष्य है। किन्तु यदि वह शस्त्रपरिणत, एषणीय (निर्दोष), याचित और लब्ध हो तो भक्ष्य है। सोमिल द्वारा पूछे गए एक, दो, अक्षय, अव्यय, अवस्थित तथा अनेकभूत-भाव-भवि आदि तात्त्विक प्रश्नों का समाधान २७. [ १ ] एगे भवं, दुवे भवं, अक्खए भवं, अव्वए भवं, अवट्ठिए भवं, अणेगभूय- भावभविए भंवं ? सोमिल ! एगे वि अहं जाव अणेगभूयभावभविए वि अहं । [ २७-१ प्र.] भगवन् ! आप एक हैं, या दो हैं, अथवा अक्षय हैं, अव्यय हैं, अवस्थित हैं अथवा अनेकभूत-भाव- भविक हैं ? [ २७-१ उ.] सोमिल! मैं एक भी हूँ, यावत् अनेक- भूत-भाव-भविक (भूत और भविष्यत्काल के अनेक परिणामों के योग्य) भी हूँ । [ २ ] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ जाव भविए वि अहं ? सोमिल ! दव्वट्टयाए एगे अहं, नाण- दंसणट्टयाए दुविहे अहं, पएसट्टयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, उवयोगट्टयाए अणेगभूयभावभविए वि अहं । से तेणट्ठेणं जाव भवि वि अहं । [ २७- २ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि मैं एक भी हूँ यावत् अनेक भूत-भाव-भविक भी हूँ ? [ २७-२ उ.] सोमिल ! मैं द्रव्यरूप से (द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से) एक हूँ, ज्ञान और दर्शन की दृष्टि १. ( क ) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७६० (ख) भगवती विवेचन भा. ६ ( पं. घेवरचन्दजी) पृ. २७६३ २. (क) भगवती अ. वृत्ति, पृ. २७६४ (ख) भगवती. अ. वृत्ति पत्र ७६०
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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