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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते दव्वमासा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—अत्थमासा य धण्णमासा य। तत्थ णं जे ते अस्थमासा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—सुवण्णमासा य रुप्पमासा य; ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते धनमासा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य। एवं जहा धन्नसरिसवा जाव से तेणठेणं जाव अभक्खेया वि।
[२५-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि 'मास' भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी ?
[२५-२ उ.] सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मण-नयों (शास्त्रों) में 'मास' दो प्रकार के कहे गए हैं। यथाद्रव्यमास और कालमास । उनमें से जो कालमास हैं, वे श्रावण से लेकर आषाढ-मास-पर्यन्त बारह हैं, यथाश्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, और आषाढ। ये (बारह मास) श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं । द्रव्य-मास दो प्रकार का है। यथा—(१) अर्थमाष और (२) धान्यमाष। उनमें से अर्थमाष (सोना-चाँदी तोलने का माशा) दो प्रकार का है, यथा—(१) स्वर्णमाष और (२) रौप्यमाष। ये दोनों माष श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। धान्यमाष दो प्रकार का है यथा-(१) शस्त्रपरिणत और (२) अशस्त्रपरिणत । इत्यादि सभी आलापक धान्य-सरिसव के समान कहने चाहिए, यावत् इसी कारण से हे सोमिल ! कहा गया है कि 'मास' भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है।
२६. [१] कुलत्था ते भंते ! किं भक्खेया, अभक्खेया ? सोमिला ! कुलत्था मे भक्खेया वि, अभक्खेया वि। [२६-१ प्र.] भगवन् ! आपके लिए कुलत्थ' भक्ष्य हैं अथवा अभक्ष्य हैं ? [२६-१ उ.] सोमिल ! 'कुलत्थ' मेरे लिए भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं। [२] से केणढेणं जाव अभक्खेया वि ?
से नृणं सोमिला ! बंभण्णएसु नएस दुविहा कुलत्था पन्नत्ता, तं जहा—इत्थिकुलत्था य धन्नकुलत्था य। तत्थ णं जे ते इत्थिकुलत्था ते तिविहा पनत्ता, तं जहा—कुलवधू ति वा कुलमाउया ति वा कुलधूया ति वा; ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णंजे ते धनकुलत्था एवं जहा धन्नसरिसवा जाव से तेणढेणं जाव अभक्खेया वि।
[२६-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि कुलत्थ.......... यावत् अभक्ष्य भी हैं ?
[२६-२ उ.] सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मणनयों (शास्त्रों) में कुलत्था दो प्रकार की कही गई हैं, यथा—(१) स्त्रीकुलत्था (कुलस्था-कुलांगना) और (२) धान्यकुलत्था (कुलथी धान)। स्त्रीकुलत्था तीन प्रकार की कही गई है, यथा—(१) कुलवधू या (२) कुलमाता, अथवा (३) कुलकन्या। ये तीनों श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। उनमें से जो धान्यकुलत्था है, उसके सभी आलापक धान्य-सरिसव के समान हैं, यावत्—'हे सोमिल! इसलिए कहा गया है कि धान्यकुलत्था भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है', यहाँ तक कहना चाहिए।
विवेचन--'मास' और 'कुलत्था' भक्ष्य कैसे और अभक्ष्य कैसे ?'मास' शब्द का विश्लेषण 'मास' प्राकृतभा का श्लिष्ट शब्द है। संस्कृत में इसके दो रूप होते हैं। माष और मास। इन्हें ही दूसरे शब्दों में