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________________ ७६० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते दव्वमासा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—अत्थमासा य धण्णमासा य। तत्थ णं जे ते अस्थमासा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—सुवण्णमासा य रुप्पमासा य; ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते धनमासा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य। एवं जहा धन्नसरिसवा जाव से तेणठेणं जाव अभक्खेया वि। [२५-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि 'मास' भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी ? [२५-२ उ.] सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मण-नयों (शास्त्रों) में 'मास' दो प्रकार के कहे गए हैं। यथाद्रव्यमास और कालमास । उनमें से जो कालमास हैं, वे श्रावण से लेकर आषाढ-मास-पर्यन्त बारह हैं, यथाश्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, और आषाढ। ये (बारह मास) श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं । द्रव्य-मास दो प्रकार का है। यथा—(१) अर्थमाष और (२) धान्यमाष। उनमें से अर्थमाष (सोना-चाँदी तोलने का माशा) दो प्रकार का है, यथा—(१) स्वर्णमाष और (२) रौप्यमाष। ये दोनों माष श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। धान्यमाष दो प्रकार का है यथा-(१) शस्त्रपरिणत और (२) अशस्त्रपरिणत । इत्यादि सभी आलापक धान्य-सरिसव के समान कहने चाहिए, यावत् इसी कारण से हे सोमिल ! कहा गया है कि 'मास' भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है। २६. [१] कुलत्था ते भंते ! किं भक्खेया, अभक्खेया ? सोमिला ! कुलत्था मे भक्खेया वि, अभक्खेया वि। [२६-१ प्र.] भगवन् ! आपके लिए कुलत्थ' भक्ष्य हैं अथवा अभक्ष्य हैं ? [२६-१ उ.] सोमिल ! 'कुलत्थ' मेरे लिए भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं। [२] से केणढेणं जाव अभक्खेया वि ? से नृणं सोमिला ! बंभण्णएसु नएस दुविहा कुलत्था पन्नत्ता, तं जहा—इत्थिकुलत्था य धन्नकुलत्था य। तत्थ णं जे ते इत्थिकुलत्था ते तिविहा पनत्ता, तं जहा—कुलवधू ति वा कुलमाउया ति वा कुलधूया ति वा; ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णंजे ते धनकुलत्था एवं जहा धन्नसरिसवा जाव से तेणढेणं जाव अभक्खेया वि। [२६-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि कुलत्थ.......... यावत् अभक्ष्य भी हैं ? [२६-२ उ.] सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मणनयों (शास्त्रों) में कुलत्था दो प्रकार की कही गई हैं, यथा—(१) स्त्रीकुलत्था (कुलस्था-कुलांगना) और (२) धान्यकुलत्था (कुलथी धान)। स्त्रीकुलत्था तीन प्रकार की कही गई है, यथा—(१) कुलवधू या (२) कुलमाता, अथवा (३) कुलकन्या। ये तीनों श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। उनमें से जो धान्यकुलत्था है, उसके सभी आलापक धान्य-सरिसव के समान हैं, यावत्—'हे सोमिल! इसलिए कहा गया है कि धान्यकुलत्था भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है', यहाँ तक कहना चाहिए। विवेचन--'मास' और 'कुलत्था' भक्ष्य कैसे और अभक्ष्य कैसे ?'मास' शब्द का विश्लेषण 'मास' प्राकृतभा का श्लिष्ट शब्द है। संस्कृत में इसके दो रूप होते हैं। माष और मास। इन्हें ही दूसरे शब्दों में
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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