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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ७५८ नहीं होगा । इसलिए उसने भगवान् की योग्यता की परीक्षा करने हेतु यात्रा, यापनीय, अव्याबाध और प्रासुकविहार के सम्बन्ध में प्रश्न किये थे, जिनके समीचीन उत्तर भगवान् ने दिये। यात्रा आदि की परिभाषा - संयम के विषय में प्रवृत्ति यात्रा है, मोक्ष की साधना में तत्पर पुरुषों द्वारा, इन्द्रिय आदि की वश्यतारूप धर्म को 'यापनीय' कहते हैं। शारीरिक-मानसिक बाधा-पीड़ा न होना अव्याबाध है और निर्दोष एवं प्रासुक शयन आसन स्थानादि का ग्रहण — उपभोग करना 'प्रासुकविहार' की परिभाषा है ।' सरिसव-भक्ष्याभक्ष्यविषयक सोमिलप्रश्न का भगवान् द्वारा यथोचित समाधान २४. [ १ ] सरिसवा ते भंते! किं भक्खेया, अभक्खेया ? सोमिल ! सरिसवा में भक्खेया वि, अभक्खेया वि। [२४-१ प्र] भगवन्! आपके लिए 'सरिसव' भक्ष्य हैं या अभक्ष्य ? [२४-१] सोमिल! 'सरिसव' मेरे लिए भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं। [ २ ] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ सरिसवा में भक्खेया वि, अभक्खेया वि ? से नूणं सोमिला ! बंभण्णएसु नएस दुविहा सरिसवा पण्णत्ता, तं जहा—मित्तसरिसवा य धन्नसरिसवा य । तत्थ णं जे ते मित्तसरिसवा ते तिविहा पन्नत्ता, तं जहा सहजायए सहवड्डियए सहपंसुकीलियए, ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जे ते धन्नसरिसवा ते दुविहा पन्नत्ता तं जहा—सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य । तत्थ णं जे ते असत्थपरिणया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते सत्थपरिणया ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा – एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य। तत्थ णं जे ते अणेसणिज्जा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जे ते एसणिज्जा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा — जाइया य अजाइया य । तत्थ णं जे ते अजाइता ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जे ते जायिया ते दुहिा पन्नत्ता, तं जहा— लद्धा य अलद्धा य । तत्थ णं जे ते अलद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जे ते लद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खेया । से तेणट्ठेणं सोमिला ! एवं वुच्चइ जाव अभक्खेया वि। [ २४- २ प्र.] भगवन् ! यह आप कैसे कहते हैं कि 'सरिसव' भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी ? [ २४-२ उ.] सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मण नयों (शास्त्रों) में दो प्रकार के 'सरिसव' कह गए हैं, यथा— मित्र - सरिसव (समान वय वाला मित्र) और धान्य- सरिसव (सर्षप सरसों) । उनमें से जो मित्र सरिसव हैं, वह तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा— (१) सहजात (एक साथ जन्मे हुए), (२) सहवर्धित ( एक साथ बड़े हुए) १. भगवती विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा. ६, पृ. २७५९ १. (क) भगवती विवेचन, पृ. २७५९ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७५९
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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