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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
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नहीं होगा । इसलिए उसने भगवान् की योग्यता की परीक्षा करने हेतु यात्रा, यापनीय, अव्याबाध और प्रासुकविहार के सम्बन्ध में प्रश्न किये थे, जिनके समीचीन उत्तर भगवान् ने दिये।
यात्रा आदि की परिभाषा - संयम के विषय में प्रवृत्ति यात्रा है, मोक्ष की साधना में तत्पर पुरुषों द्वारा, इन्द्रिय आदि की वश्यतारूप धर्म को 'यापनीय' कहते हैं। शारीरिक-मानसिक बाधा-पीड़ा न होना अव्याबाध है और निर्दोष एवं प्रासुक शयन आसन स्थानादि का ग्रहण — उपभोग करना 'प्रासुकविहार' की परिभाषा है ।' सरिसव-भक्ष्याभक्ष्यविषयक सोमिलप्रश्न का भगवान् द्वारा यथोचित समाधान
२४. [ १ ] सरिसवा ते भंते! किं भक्खेया, अभक्खेया ? सोमिल ! सरिसवा में भक्खेया वि, अभक्खेया वि।
[२४-१ प्र] भगवन्! आपके लिए 'सरिसव' भक्ष्य हैं या अभक्ष्य ?
[२४-१] सोमिल! 'सरिसव' मेरे लिए भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं।
[ २ ] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ सरिसवा में भक्खेया वि, अभक्खेया वि ?
से नूणं सोमिला ! बंभण्णएसु नएस दुविहा सरिसवा पण्णत्ता, तं जहा—मित्तसरिसवा य धन्नसरिसवा य । तत्थ णं जे ते मित्तसरिसवा ते तिविहा पन्नत्ता, तं जहा सहजायए सहवड्डियए सहपंसुकीलियए, ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जे ते धन्नसरिसवा ते दुविहा पन्नत्ता तं जहा—सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य । तत्थ णं जे ते असत्थपरिणया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते सत्थपरिणया ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा – एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य। तत्थ णं जे ते अणेसणिज्जा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जे ते एसणिज्जा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा — जाइया य अजाइया य । तत्थ णं जे ते अजाइता ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जे ते जायिया ते दुहिा पन्नत्ता, तं जहा— लद्धा य अलद्धा य । तत्थ णं जे ते अलद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जे ते लद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खेया । से तेणट्ठेणं सोमिला ! एवं वुच्चइ जाव अभक्खेया वि।
[ २४- २ प्र.] भगवन् ! यह आप कैसे कहते हैं कि 'सरिसव' भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी ?
[ २४-२ उ.] सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मण नयों (शास्त्रों) में दो प्रकार के 'सरिसव' कह गए हैं, यथा— मित्र - सरिसव (समान वय वाला मित्र) और धान्य- सरिसव (सर्षप सरसों) । उनमें से जो मित्र सरिसव हैं, वह तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा— (१) सहजात (एक साथ जन्मे हुए), (२) सहवर्धित ( एक साथ बड़े हुए)
१. भगवती विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा. ६, पृ. २७५९
१. (क) भगवती विवेचन, पृ. २७५९
(ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७५९