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अठारहवां शतक : उद्देशक-१०
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[६] इसी प्रकार यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध तक जानना चाहिए। ७. अणंतपएसिए णं भंते ? खंधे वाउ० पुच्छा।
गोयमा ! अणंतपएसिए खंधे वाउयाएणं फुडे, वाउयाए अणंतपएसिएणं खंधेणं सिय फुडे, सिय नो फुडे।
[७ प्र.] भगवन् ! अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध वायुकाय से स्पृष्ट है, अथवा वायुकाय अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से स्पृष्ट है ?
[७ उ.] गौतम! अनन्तप्रदेशी स्कन्ध वायुकाय से स्पृष्ट है तथा वायुकाय अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से कदाचित् स्पष्ट होता है और कदाचित स्पष्ट नहीं होता।
८. बत्थी णं भंते ! वाउयाएणं फुडे, वाउयाए बत्थिणा फुडे ? गोयमा ! बत्थी वाउयाएणं फुडे, नो वाउयाए बत्थिणा फुडे। [८ प्र.] भगवन् ! वस्ति (मशक) वायुकाय से स्पृष्ट है, अथवा वायुकाय वस्ति से स्पृष्ट है ? [८ उ.] गौतम! वस्ति वायुकाय से स्पृष्ट है, किन्तु वायुकाय, वस्ति से स्पृष्ट नहीं है।
विवेचन—परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिकादि स्कन्ध एवं वस्ति वायुकाय से तथा वायुकाय की इनसे स्पृष्टास्पृष्ट होने की प्ररूपणा–प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. ४ से ८ तक) में परमाणु आदि का वायु से तथा, वायु का परमाणु आदि से स्पृष्ट (व्याप्त)-अस्पृष्ट होने की प्ररूपणा की गई है। वायु परमाणु-पुद्गल से स्पृष्ट-व्याप्त नहीं है, क्योंकि वायु महान् (बड़ी) है, और परमाणु प्रदेशरहित होने से अतिसूक्ष्म है, इसलिए वायु उसमें व्याप्त (बीच में क्षिप्त) नहीं हो सकती, वह उसमें समा नहीं सकती। यही बात द्विप्रदेशी से असंख्यप्रदेशी स्कन्ध के विषय में समझ लेनी चाहिए।
अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के विषय में—अनन्तप्रदेशी स्कन्ध वायु से व्याप्त होता है, क्योंकि वह वायु की अपेक्षा सूक्ष्म है। जब वायुस्कन्ध की अपेक्षा अनन्तप्रदेशी स्कन्ध महान् होता है, तब वायु अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से व्याप्त होती है, अन्यथा नहीं। इसलिए मूलपाठ में कहा गया है कि अनन्तप्रदेशी स्कन्ध वायु से व्याप्त होता है, और वायु अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से कदाचित् व्याप्त होती है, कदाचित् नहीं।
मशक, वायु से व्याप्त है, वायु मशक से व्याप्त नहीं—मशक में जब हवा भरी जाती है, तब मशक वायु से व्याप्त होती है, क्योंकि वह समग्ररूप से उसके भीतर समाई हुई है। किन्तु वायुकाय, मशक में व्याप्त नहीं है। वह वायुकाय के ऊपर चारों ओर परिवेष्टित है।
कठिन शब्दार्थ—फुडे-स्पृष्ट-व्याप्त या मध्य में क्षिप्त । बत्थी—वस्ति—मशक।
१ (क) भगवती. अ. वृत्ति पत्र ७५७
(ख) भगवती. विवेचन भा. ६. (पं. घेवरचंदजी) पृ. २७५१-२७५३