________________
७५४
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
सात नरक, बारह देवलोक, पांच अनुत्तरविमान तथा ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के नीचे परस्पर बद्धादि पुद्गल द्रव्यों का निरूपण
१. अस्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे दव्वाई वण्णओ काल-नील-लोहियहालिद्द-सुक्किलाइं, गंधओ सुब्भिगंधाई, दुभिगंधाइं रसओ तित्त-कडु-कसाय-अंबिल-महुराइं, फासतो कक्खड-मउय-गरुय-लहुय-सीय-उसिण-निद्ध-लुक्खाई अन्नमन्नबद्धाइं अन्नमन्नपुट्ठाई जाव : अन्नमनघडत्ताए चिटुंति ? |
हंता, अत्थि।
[९ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे वर्ण से—काला, नीला, पीला, लाल और श्वेत, गन्ध सेसुगन्धित और दुर्गन्धित; रस से—तिक्त, कटुक, कसैला, अम्ल (खट्टा) और मधुर; तथा स्पर्श से—कर्कश (कठोर), मृदु (कोमल), गुरु (भारी), लघु (हल्का), शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष—इन बीस बोलों से युक्त द्रव्य क्या अन्योन्य (परस्पर) बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट, यावत् अन्योन्य सम्बद्ध हैं. ?
[९ उ.] हाँ गौतम! (ये द्रव्य इसी प्रकार अन्योन्यबद्ध आदि) हैं। १०. एवं जाव अहेसत्तमाए। [१०] इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमपृथ्वी तक जानना चाहिए। ११. अत्थि णं भंते ! सोहम्मस्स अप्पस्स अहे. ? एवं चेव। [११ प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प के नीचे वर्ण से—इत्यादि (पूर्ववत्) प्रश्न ? [११ उ.] गौतम! (इसका उत्तर भी) उसी प्रकार (पूर्ववत्) है। १२. एवं जाव ईसिपब्भाराए पुढवीए। सेवं भंते ! सेवं भंते! जाव विहरइ। [१२] इसी प्रकार यावत् ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक जानना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन–चतुःसूत्री द्वारा, नरक, देवलोक एवं सिद्धशिला के नीचे के द्रव्यों का विश्लेषणसात नरकभूमियों, बारह देवलोकों, नौ ग्रैवेयकों एवं पांच अनुत्तर विमानों तथा ईषत्प्राग्भारापृथ्वी के नीचे स्थित, तथाकथित वर्णादियुक्त परस्परबद्ध आदि द्रव्यों का निरूपण सू. ९ से १२ तक में किया गया है।
१. जाव पद सूचक पाठ-. ... अन्नमन्नओगाढाई अन्नमनसिणेहपडिबद्धाई इत्यादि पाठ। २. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २ (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. ८२८